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________________ १६७ w सूत्र नम्बर विषय पत्र संख्या प्रभावनाका सच्चा स्वरूप १६६ सच्ची दया (अहिंसा) १६७ आनन्दकारी भावनावाला क्या करे श्रुतज्ञानका अवलम्बन ही प्रथम क्रिया है धर्म कहाँ और कैसे ? १६६ सुखका उपाय ज्ञान और सत् समागम जिस ओर की रुचि उसीका रटन १७२ श्रुतज्ञानके अवलम्बनका फल-आत्मानुभव १७४ सम्यग्दर्शन होनेसे पूर्व १७५ धर्मके लिये प्रथम क्या करें सुखका मार्ग, विकारका फल, असाध्य, शुद्धात्मा १७७ धर्मकी रुचिवाले जीव कैसे होते हैं ? उपादान निमित्त और कारण-कार्य १७६ अन्तरंग अनुभवका उपाय-ज्ञानकी क्रिया १७६ ज्ञानमें भव नहीं है १८० इसप्रकार अनुभवमें आनेवाला शुद्धात्मा कैसा है ? १८१ निश्चय-व्यवहार १८१ सम्यग्दर्शन होने पर क्या होता है १८२ बारम्वार ज्ञानमें एकाग्रताका अभ्यास अन्तिम अभिप्राय १८३-८४ प्रथम अ० का परिशिष्ट-४ १५५ तत्त्वार्थ श्रद्धानको स० द० का लक्षण कहा है उस लक्षणमें अव्याप्ति आदि दोषका परिहार १८५ प्रथम अध्यायका परिशिष्ट नं०५ २००-२१४ केवलज्ञान [ केवलीका ज्ञान ] का स्पष्टरूप और अनेक शास्त्रोंका आधार २००-२१४ १८२
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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