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________________ ५१ विषय सम्यग्दृष्टि जीव अपनेको सम्यक्त्व प्रगट होने की बात श्रुतज्ञान द्वारा वराबर जानते हैं । स० द० सम्बन्धी कुछ प्रश्नोत्तर ज्ञान चेतना के विधानमें अन्तर क्यों है ? ज्ञान चेतना सम्बन्धमं विचारणीय नव विपय अक्रमिक विकास और क्रमिकविकासका दृष्टान्त इस विषय के प्रश्नोत्तर और विस्तार सम्यग्दर्शन और ज्ञान चेतना में अन्तर चारित्र न पले फिर भी उसकी श्रद्धा करनी चाहिये निश्चय सम्यग्दर्शनका दूसरा अर्थ प्रथम अध्यायका परिशिष्ट - २ सूत्र नम्बर निश्चय सम्यग्दर्शन - निश्चय सम्यग्दर्शन क्या है और उसे किसका अवलम्बन भेद-विकल्पसे स० द० नहीं होता विकल्प से स्वरूपानुभव नहीं हो सकता सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानका सम्बन्ध किसके साथ श्रद्धा-ज्ञान सम्यकू कव हुए सम्यग्दर्शनका विषय, मोक्षका परमार्थ कारण सम्यग्दर्शन ही शान्तिका उपाय है सम्यग्दर्शन ही संसारका नाशक है प्रथम अध्यायका परिशिष्ट-३ जिज्ञासुको धर्म किस प्रकार करना पात्र जीवका लक्षण श्रुतज्ञानका वास्तविक लक्षण - अनेकान्त भगवान भी दूसरेका कुछ नहीं कर सके पत्र संख्या सम्यग्दर्शन के उपायके लिये ज्ञानियोंके द्वारा बताई गई क्रिया श्रुतज्ञान किसे कहना १३४-४० १४०-४२ १४३-१५० १४३ १४५ १४७ १५४ १५४ १५५ १५७ १५७-१६३ १५७ १५८ १५६ १६० १६१ १६२ १६२ - १६३ १६४ १६४ १६४ १६५ १६५ १६६ १६६
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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