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________________ अध्याय ५ सूत्र ३४-३५ ४४५ होनेसे दूसरे पुद्गलके साथ बन्ध नहीं होता। किन्तु यदि उस पुद्गलके स्पर्शमें दो गुणरूप अधिकपन आवे तो बन्ध की शक्ति (भावबन्धकी शक्ति) होनेसे दूसरे चार गुणवाले स्पर्शके साथ बन्ध हो जाता है, यह द्रव्यबंध है। बन्ध होनेमे द्वित्व-द्वैत अर्थात् भेद होना ही चाहिए। (३) दृष्टान्त-दशामें गुणस्थानमे सूक्ष्मसांपराय-जघन्य लोभ कषाय है तो भी मोहकर्मका बन्ध नही होता । संज्वलन क्रोध, मान, माया और लोभ तथा पुरुषवेद जो नवमें बन्धको प्राप्त थे उनकी वहाँ व्युच्छित्ति हुई उनका बन्ध वहाँ रुक गया। (देखो अध्याय ६ सूत्र १४ की टीका) दृष्टान्तपरसे सिद्धांत-जीवका जघन्य लोभकषाय विकार है किंतु वह जघन्य होनेसे कार्माण-वर्गणाको लोभरूपसे बन्धने में निमित्त नही हुआ। (२) उस समय संज्वलन लोभकर्मकी प्रकृति उदयरूप है तथापि उसकी जघन्यता नवीन मोह कर्मके बन्धका निमित्त कारण नहीं होती (३) यदि जघन्य विकार कर्म बन्धका कारण हो तो कोई जीव बन्ध रहित नही हो सकता ॥३४॥ बंध कव नहीं होता इसका वर्णन करते हैं गुणसाम्ये सहशानाम् ॥३५॥ अर्थ:-[ गुणसाम्ये ] गुणोंकी समानता हो तब [ सहशानाम् ] समान जातिवाले परमाणुके साथ बन्ध नहीं होता । जैसे कि-दो गुणवाले स्निग्ध परमाणुका दूसरे दो गुणवाले स्निग्ध परमाणुके साथ बन्ध नही होता अथवा वैसे स्निग्ध परमाणुका उतने ही गुणवाले रूक्ष परमाणुके साथ बन्ध नहीं होता । 'न-(बन्ध नहीं होता)' यह शब्द इस सूत्रमे नहीं कहा परन्तु ऊपरके सूत्रमें कहा गया 'न' शब्द इस सूत्रमे भी लागू होता है। टीका - (१) सूत्र में 'सदृशानाम् पदसे यह प्रगट होता है कि गुणों को विषमतामे समान जातिवाले तथा भिन्न जातिवाले पुद्गलोंका वन्ध होता
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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