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________________ ४०३ अध्याय ५ सूत्र ११-१२ किन्तु उनका यह कथन मिथ्या है। अनेकांतमें दोनों पक्ष निश्चित हैं, इसलिए वह संशयका कारण नही है । ३. द्रव्य परमाणु तथा भाव परमाणुका दूसरा अर्थ, जो यहाँ उपयुक्त नहीं है। प्रश्न-'चारित्रसार' इत्यादि शाखोंमे कहा है कि यदि द्रव्य परमाणु और भाव परमाणुका ध्यान करे तो केवलज्ञान हो, इसका क्या अर्थ है। उचर-वहाँ द्रव्य परमाणुसे आत्म द्रव्यकी सूक्ष्मता और भाव परमाणुसे भावको सूक्ष्मता बतलाई है। वहाँ पुद्गल परमाणुका कथन नही है। रागादि विकल्पको उपाधिसे रहित आत्मद्रव्यको सूक्ष्म कहा जाता है । क्योकि निर्विकल्प समाधिका विषय आत्मद्रव्य मन और इन्द्रियोके द्वारा नहीं जाना जाता। भाव शब्दका अर्थ स्वसवेदन परिणाम है । परमाणु शब्दसे भावकी सूक्ष्म अवस्था समझना चाहिए क्योंकि वीतराग, निर्विकल्प, समरसीभाव पांचों इन्द्रियों और मनके विषयसे परे है । (देखो परमात्मप्रकाश अध्याय २ गाथा ३३ की टोका, पृष्ठ १६८-१६६ ) यह अर्थ यहाँ लागू नहीं होता है ? प्रश्न-द्रव्य परमाणुका यह अर्थ यहाँ क्यों लागू ( उपयुक्त) नही है। उचर-इस सूत्रमें जिस परमाणुका वर्णन है वह पुद्गल परमाणु है, इसलिये द्रव्य परमाणुका उपरोक्त अर्थ यहां लागू नही होता। अब समस्त द्रव्योंके रहनेका स्थान बतलाते हैं लोकाकाशेऽवगाहः॥१२॥ अर्थ-अवगाहः ] उपरोक्त समस्त द्रव्योंका अवगाह (स्थान) [लोकाकाशे ] लोकाकाशमे है।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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