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________________ ૪૦૨ मोक्षशास्त्र (१७) सर्वगत दो प्रकारसे है— क्षेत्र सर्वगत ( आकाश ) श्रीर भावसे सर्वगत (ज्ञांनशक्ति) ( १८ ) देशगत दो भेद रूप है- एक प्रदेशगत (परमाणु, काला तथा एक प्रदेश स्थित सूक्ष्म स्कंध ) और अनेक देशगत (धर्म, धर्म, जीव और पुद्गल स्कंध ) (१६) द्रव्योंमें अस्ति दो प्रकारसे हैं-अस्तिकाय (आकाश, धर्म, अधर्म, जीव तथा पुद्गल ) और काय रहित अस्ति (काला ) ( २० ) अस्तिकाय दो तरहसे हैं - अखण्ड अस्तिकाय (आकाश, धर्म, अधर्म तथा जीव) और उपचरित अस्तिकाय ( संयोगी पुद्गल स्कंध, पुद्गलमें ही समूहरूप - स्कन्धरूप होने की शक्ति है ) (२१) प्रत्येक द्रव्यके गुरणं तथा पर्याय में अस्तित्व दो तरह से हैस्वसे अस्तित्व और परकी अपेक्षासे नास्तिरूपका अस्तित्व । (२२) प्रत्येक द्रव्यमें अस्तित्व दो तरहसे है- ध्रुव और उत्पाद व्यय । (२३) द्रव्यों में दो तरहकी शक्ति है एक भावंत्रती दूसरी क्रियावती । (२४) द्रव्यों में सम्बन्ध दो तरहका है -विभाव सहित ( जीव और पुद्गलके अशुद्ध दशा में विभाव होता है ) और विभाव रहित (दूसरे द्रव्यं त्रिकाल विभाव रहित हैं ) (२५) द्रव्योंमें विभाव दो तरहसे है -- १ - जीवके विजातीय द्गलके साथ, २- पुंगलके सजातीय एक दूसरेके साथ तथा सजातीय दंगल और विजातीय जीव इन दोनोंके साथ | नोट- स्याद्वाद समस्त वस्तुओंके स्वरूपका सांघनेवाला, अहंत सर्वेश का एक अस्खलित शासन है । वह यह बतलाना है कि 'संभो 'अनेकान्तात्मक है' । स्याद्वाद वस्तुके यथार्थ स्वरूपका निर्णय कराता है । यह संशयवाद नही है । कितने ही लोग कहते है कि स्याद्वाद प्रत्येक वस्तुको नित्य और अनित्य आदि दो तरह से बतलाता है, इसलिए संशयका कारण है,
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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