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________________ अध्याय ४ सूत्र १२-१३-१४-१५ चन्द्रमासे चार योजन ऊपर २७ नक्षत्र हैं; नक्षत्रोंसे ४ योजन ऊपर बुधका ग्रह, उससे ३ योजन ऊपर शुक्र, उससे ३ योजन ऊपर बृहस्पति, उससे ३ योजन ऊपर मंगल, और उससे ३ योजन ऊपर शनि है; इसप्रकार पृथ्वीसे ऊपर ६०० योजन तक ज्योतिषी मंडल है। उनका आवास मध्यलोकमें है। [ यहाँ २००० कोसका योजन जानना चाहिये ] ॥१२॥ __ज्योतिषी देवोंका विशेष वर्णन मेरुप्रदक्षिणा नित्यगतयो नलोके ॥१३॥ अर्थः-ऊपर कहे हुए ज्योतिपी देव मेरुपर्वतकी प्रदक्षिणा देते हुए मनुष्यलोकमे हमेशा गमन करते है । ( अढ़ाई द्वीप और दो समुद्रोंको मनुष्यलोक कहते है ) ॥ १३॥ उनसे होनेवाला कालविभाग तत्कृतः कालविभागः ॥ १४ ॥ अर्थः-घड़ी, घंटा, दिवस, रात, इत्यादि व्यवहारकालका विभाग है वह गतिशील ज्योतिषीदेवोंके द्वारा किया जाता है। टीका काल दो प्रकारका है-निश्चयकाल और व्यवहारकाल । निश्चय कालका स्वरूप पांचवें अध्यायके २२ वे सूत्रमें किया जायगा। यह व्यवहार काल निश्चयकालका बतानेवाला है ॥ १४ ॥ बहिरवस्थिताः ।। १५ ।। __ अर्थ:--मनुष्यलोक ( अढ़ाई द्वीप ) के बाहरके ज्योतिषी देव स्थिर है। टीका अढ़ाईद्वीपके बाहर असंख्यात द्वीप समुद्र है उनके ऊपर ( सबसे अंतिम स्वयंभूरमण समुद्रतक ) ज्योतिषीदेव स्थिर हैं ॥ १५ ॥
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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