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________________ ३४६ मोक्षशास्त्र २. नवग्रेवेयिकके देवोंमेंसे कुछ सम्यग्दृष्टि होते हैं और कुछ मिथ्या दृष्टि होते हैं । यथाजात द्रव्यलिंगी जैन मुनिके रूपमें अतिचार रहित पांच महाव्रत इत्यादि पालन किये हों ऐसे मिथ्यादृष्टि भी नवमें ग्रेवेयिक तक उत्पन्न होते है। मिथ्यादृष्टियोंके ऐसा उत्कृष्ट शुभभाव है। ऐसा शुभभाव मिथ्यादृष्टि जीवने अनंतवार किया [ देखो अध्याय २ सूत्र १० की टीका पैरा १० ] फिर भी वह जीव धर्मके अंशको या प्रारंभको प्राप्त नहीं कर सका । आत्मप्रतीति हुए विना समस्त व्रत और तप वालवत और बालतप कहलाते हैं । जीव ऐसे बालव्रत और बालतप चाहे जितने वार (अनंतानंत वार ) करे तो भी उससे सम्यग्दर्शन अथवा धर्मका प्रारंभ नहीं हो सकता इसलिये जीवको पहिले प्रात्मभानके द्वारा सम्यग्दर्शन प्राप्त करने की विशेष आवश्यकता है । मिथ्याष्टिके उत्कृष्ट शुभभावके द्वारा अंशमात्र धर्म नहीं हो सकता । शुभभाव विकार है और सम्यग्दर्शन प्रात्माकी अविकारी अवस्था है। विकारसे या विकारभावके बढ़नेसे अविकारी अवस्था नही प्रगट होती परन्तु विकार के दूर होनेसे ही प्रगट होती है। शुभभावसे धर्म कभी नही होता ऐसी मान्यता पहिले करना चाहिये। इसप्रकार जीव पहिले मान्यताको भूलको दूर करता है और पीछे क्रमक्रमसे चारित्रके दोष दूर करके संपूर्ण शुद्धताको प्राप्त करता है। ३. नवगैवेयिकके सम्यग्दृष्टि देव और उससे ऊपरके देव (सबके सब सम्यग्दृष्टि ही हैं) उनके चौथा गुणस्थान ही होता है । उनके देवांगनाओंका संयोग नही होता फिर भी पांचवें गुणस्थानवर्ती स्त्रीवाले मनुष्य और तिर्यंचोंकी अपेक्षा उनके अधिक कषाय होती है ऐसा समझना चाहिये। ४. किसी जीवके कषायकी बाह्य प्रवृत्ति तो बहुत होती है और अंतरंग कषायशक्ति कम होती है-(१) तथा किसीके अंतरंग कषायशक्ति तो बहुत हो और बाह्य प्रवृत्ति थोड़ी हो उसे तीन कषायवान् कहा जाता है। (२) दृष्टांत (१) पहिले भागका दृष्टांत इसप्रकार है-व्यन्तरादि देव कषायसे नगर नाशादि कार्य करते हैं तो भी उनके कषाय शक्ति थोड़ी होनेसे पीतलेश्या कही गई है। एकेन्द्रियादि जीव ( बाह्यमें ) कषाय-कार्य करते हुए
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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