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________________ ३४२ मोक्षशास्त्र कल्पोपपन्नोंके बारह भेद हैं [कल्पोपपन्न देव वैमानिक जातिके ही हैं] ॥३॥ चार प्रकारके देवोंके सामान्य भेद इन्द्रसामानिकत्रायस्त्रिंशपारिषदात्मरक्षलोकपालानीक प्रकीर्णकाभियोग्यकिल्विषिकाश्चैकशः॥४॥ अर्थ-ऊपर कहे हुए चार प्रकारके देवोंमें हरएकके दश भेद हैं१-इन्द्र, २-सामानिक, ३-त्रायविंश,४-पारिषद, ५-आत्मरक्ष, ६-लोकपाल, ७-अनीक, ८-प्रकीर्णक, ६-प्राभियोग्य, और १०-किल्विषिक । टीका १. इन्द्र-जो देव दूसरे देवोंमें नहीं रहनेवाली अणिमादिक ऋद्धियोंसे सहित हों उन्हें इन्द्र कहते हैं वे देव राजाके समान होते हैं। [ Like a King] २. सामानिक-जिन देवोंके आयु, वीर्य, भोग उपभोग इत्यादि इन्द्रसमान होते है, तो भी आज्ञारूपी ऐश्वयंसे रहित होते हैं, वे सामानिक देव कहलाते हैं। वे देव पिता या गुरुके समान होते हैं [ Like father, teacher] ३. प्रायस्त्रिंश-जो देव मन्त्री-पुरोहितके स्थान योग्य होते हैं उन्हें प्रायविंश कहते हैं। एक इन्द्रकी सभामें ऐसे-देव तेतीस ही होते हैं [ Ministers ] ४. पारिषद-जो देव इन्द्रकी सभामें बैठनेवाले होते हैं उन्हे पारिषद कहते हैं। [Courtiers ] ५. आत्मरक्ष-जो देव अंगरक्षकके समान होते हैं उन्हें प्रात्मरक्ष कहते हैं। [ Bodyguards] नोट:-देवोमें घात इत्यादि नहीं होता तो भी ऋद्धिमहिमाके प्रदर्शन आत्मरक्ष देव होते हैं। ६. लोकपाल-जो देव कोतवाल ( फौजदार) की समान लोगों का पालन करें उन्हे लोकपाल कहते हैं। [ Police]
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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