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________________ ३४१ अध्याय ४ सूत्र १-२-३ ऊलोक वर्णन देवोंके भेद देवाश्चतुर्णिकायाः॥१॥ अर्थ-देव चार समूहवाले हैं अर्थात् देवोके चार भेद हैं-१. भवनवासी, २. व्यंतर, ३. ज्योतिषी और ४. वैमानिक । टीका देव-जो जीव देवगतिनामकर्मके उदयसे अनेक द्वीप, समुद्र तथा पर्वतादि रमणीक स्थानोमे क्रीड़ा करें उन्हें देव कहते है ॥१॥ भवनत्रिक देवोंमें लेश्याका विभाग आदितस्त्रिषु पीतांतलेश्याः ॥ २॥ अर्थ–पहिलेके तीन निकायोंमे पीत तक अर्थात् कृष्ण, नील, कापोत और पीत ये चार लेश्याएँ होती है। टीका (१) कृष्ण-काली, नील नीले रंगकी, कापोत-चितकबरीकबूतरके रंग जैसी, पीतः-पीली। (२) यह वर्णन भावलेश्याका है । वैमानिक देवोंकी भावलेश्याका वर्णन इस अध्यायके २२ वें सूत्र में दिया है ॥२॥ चार निकायके देवोंके प्रभेद 'दशाष्टपंचद्वादशविकल्पाः कल्पोपपन्नपर्यंताः॥३॥ अर्थ-कल्पोपपन्न (सोलहवें स्वर्गतकके देव) पर्यन्त इन चारप्रकार के देवोके क्रमसे दश, आठ, पांच, और बारह भेद हैं। टीका भवनवासियोके दश, व्यन्तरोके पाठ, ज्योतिषियोके पांच, और
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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