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________________ ३२८ मोक्षशास्त्र नोट:-सम्यग्दर्शन-ज्ञानपूर्वक चारित्रधारी जीवोंके कैसा उग्र पुरुषार्थ होता है सो यहाँ बताया है । तपऋद्धिके पांचवें और छ? भेदोंमें अनेक प्रकारके रोगोंवाला शरीर कहा है उससे यह सिद्ध होता है कि-शरीर परवस्तु है, चाहे जैसा खराब हो फिर भी वह आत्माको पुरुषार्थ करने में बाधक नही होता । 'शरीर निरोग हो और वाह्य अनुक्ललता हो तो धर्म हो सकता है' ऐसी मान्यता मिथ्या है ऐसा सिद्ध होता है। ७. पाँचवीं बलद्धिका स्वरूप बल ऋद्धि तीन प्रकार की है-(१) मनोवलऋद्धि (२) वचनबलऋद्धि और ( ३ ) कायवलऋद्धि, उनका स्वरूप निम्नप्रकार है। प्रकर्ष पुरुषार्थसे मन.श्रुतज्ञानावरण और वीर्यान्तरायके क्षयोपशम होने पर अंतर्मुहूर्तमें संपूर्ण श्रुत अर्थके चितवन करनेकी सामर्थ्य सो मनोबलऋद्धि है ॥ १ ।। अतिशय पुरुषार्थसे मन-इन्द्रिय श्रुतावरण तथा जिह्वा श्रुतज्ञानावरण और वीर्यान्तरायके क्षयोपशम होने पर अंतर्मुहुर्तमें सकल श्रुत को उच्चारण करने की सामर्थ्य होना तथा निरंतर उच्च स्वरसे बोलने पर खेद नहीं उत्पन्न हो, कंठ या स्वरभंग नही हो सो वचनवलऋद्धि है ॥२॥ वीर्यान्तरायके क्षयोपशमसे असाधारण कायबल प्रगट हो और एक मास, चार मास या बारहमास प्रतिमायोग धारण करने पर भी खेदरूप नहीं होना सो कायबलऋद्धि है ॥ ३ ॥ ८. छट्ठी औषधिऋद्धिका स्वरूप औषधिऋद्धि आठ प्रकार की है-(१) आमर्ष ( २ ) क्षेल (३) जल (४) मल (५) विट (६) सर्व (७) आस्याविष (८) दृष्टिविष उनका स्वरूप निम्नप्रकार है । असाध्य रोग हो तो भी जिनके हाथ-चरणादिके स्पर्श होने से ही सब रोग नष्ट हो जॉय सो पामर्षऔषधऋद्धि है ॥ १॥ जिनके थूक लार कफादिकके स्पर्श होने से ही रोग नष्ट हो जाय सो क्षेलौषधऋद्धि है ॥२॥ जिनके देहके पसीनेका स्पर्श होनेसे रोग मिट जाय सो जल
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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