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________________ २६२ मोक्षशास्त्र सूत्र ७-जीवमें शुद्ध और अशुद्ध ऐसे दो प्रकारके पारिणामिकभाव है। [ सूत्र ७ तथा उसके नीचेकी टोका ] सूत्र ८-९-जीवका लक्षण उपयोग है छमस्थ जीवका ज्ञानदर्शन का उपयोग क्षायोपशमिक होनेसे अनेकरूप और कम बढ़ होता है, और केवलज्ञान क्षायिकभावसे प्रगट होनेसे एकरूप और पूर्ण होता है। [ सूत्र ५-६] सूत्र १०-जीवके दो भेद है संसारी और मुक्त । उनमें से अनादि अज्ञानी ससारी जीवके तीन भाव (औदयिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक ) होते हैं। प्रथम धर्म प्राप्त करने पर चार ( औदयिक, क्षायोपशमिक, औपशमिक और पारिणामिक ) भाव होते हैं । क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त करनेके बाद उपशमश्रेणी मांडनेवाले जीवके पांचों भाव होते हैं और मुक्त जीवों के क्षायिक तथा पारिवामिक दो ही भाव होते हैं। [ सूत्र १० ] सूत्र ११-जीवने स्वयं जिसप्रकारके ज्ञान, वीर्यादिके विकासकी योग्यता प्राप्त की होती है उस क्षायोपशमिकभावके अनुकूल जड़ मनका सद्भाव या अभाव होता है । जब जीव मनकी ओर अपना उपयोग लगाते हैं तब उन्हे विकार होता है, क्योंकि मन पर वस्तु है। और जब जीव अपना पुरुषार्थ मानकी ओर लगाकर ज्ञान या दर्शन का व्यापार करते हैं तब द्रव्यमनपर निमित्तपनेका आरोप आता है। वैसे द्रव्यमन कोई हानि या लाभ नही करता क्योंकि वह परद्रव्य है। [ सूत्र ११ ] सूत्र १२-२०-अपने क्षायोपशमिक ज्ञानादिके अनुसार और नामकर्मके उदयानुसार ही जीव संसारमें त्रस या स्थावर दशाको प्राप्त होता है । इसप्रकार क्षायोपशमिकभावके अनुसार जीवकी दशा होती है। पहिले जो नामकर्म बंधा था उसका उदय होनेपर त्रस स्थावरत्वका तथा जड़ इन्द्रियों और मनका संयोग होता है। [सूत्र १२ से १७ तथा १६ से २०] ज्ञानके क्षायोपशमिकभावके लब्धि और उपयोग दो प्रकार हैं। [ सूत्र १८1
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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