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________________ है ऐसा होने पर भी शुभभावसे कर्मोका क्षय बतानेका क्या प्रयोजन है ? उत्तर-(१)-शुभ परिणाम-रागभाव-( मलिनभाव ) होनेसे वे किसी भी जीवके हो-सम्यक्दृष्टिके हो या मिथ्यादृष्टिके हो किन्तु वे मोहयुक्त उदयभाव होनेसे सम्यग्दृष्टिका शुभभाव भी बन्धका ही कारण है, सवर निर्जराका कारण नहीं है और यह बात सत्य ही है, जिसे इस शास्त्र में पृष्ठ ५४७ से ५५६ में अनेक शास्त्रके प्रमाण द्वारा दिखाया है। (२)-शाखके कोई भी कथनका अर्थ करना हो तो प्रथम यह निर्णय करना चाहिये कि वह किस नयका कथन है ? ऐसा विचार करने पर-सम्यग्दृष्टिके शुभ भावोसे कर्मोका क्षय होता है-वह कथन व्यवहार नयका है, इसलिये उसका ऐसा अर्थ होता है कि वह ऐसा नहीं है परन्तु निमिच बतानेकी अपेक्षासे यह उपचार किया है। अर्थात् वास्तवमे वह शुभ तो कर्म बन्धका ही कारण है परन्तु सम्यग्दृष्टिके नीचेकी भूमिकामें-४ से १० गुणस्थान तक-शुद्ध परिणामके साथ वह वह भूमिकाके योग्य-शुभभाव निमित्तरूप होते है, उसका ज्ञान कराना इस उपचारका प्रयोजन है ऐसा समझना । (३) एक ही साथ शुभ और शुद्ध परिणामसे कर्मोका क्षय जहाँ पर कहा हो वहाँ उपादान और निमित्त दोनों उस उस गुणस्थानके समय होता है और इसप्रकारके ही होते हैं-विरुद्ध नहीं ऐसा बताकर उसमें जीवके शुद्ध भाव तो उपादान कारण है और शुभ भाव निमित्त कारण है ऐसे इन दो कारणो का ज्ञान कराया है, उसमें निमित्त कारण अभूतार्थ कारण है-वास्तवमें कारण नहीं है इसलिये शुभ परिणामसे कर्मोका क्षय कहना उपचार कथन है ऐसा समझना । (४) प्रवचनसार ( पाटनी ग्रन्थमाला ) गाथा २४५ की टीका पृष्ठ ३०१ मे ज्ञानीके शुभोपयोगरूप व्यवहारको "प्रास्रव ही" कहा है, अतः उनसे संवर लेशमात्र भी नही है। श्री पचास्तिकाय गाथा १६८ में भी कहा है कि "उससे आस्रवका
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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