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________________ ३० बहुरि शुद्धोपयोग होय, तब तो परद्रव्यकी साक्षीभूत ही रहे है । तहाँ तो किछू परद्रव्यका प्रयोजन ही नाहीं । बहुरि शुभोपयोग होय, तहाँ बाह्य व्रतादिककी प्रवृत्ति होय, अर अशुद्धोपयोग होय, तहाँ बाह्य श्रव्रतादिककी प्रवृत्ति होय । जाते अशुद्धोपयोग के अर परद्रव्यकी प्रवृत्तिके निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध पाइए है । बहुरि पहले अशुभोपयोग छूटि शुभोपयोग होइ, पीछे शुभोपयोग छूटि शुद्धोपयोग होइ ऐसी क्रम परिपाटी है । परन्तु कोई ऐसें मानें कि शुभोपयोग है, सो शुद्धोपयोग को कारण है जैसे श्रशुभ छूटकर शुभोपयोग हो है, तैसे शुभोपयोग छूटि शुद्धोपयोग हो है । जो ऐसे ही कार्य कारणपना हो तो शुभोपयोगका कारण अशुभोपयोग ठहरै | ( तो ऐसा नही है ) द्रव्य लिंगी के शुभोपयोग तो उत्कृष्ट हो है, शुद्धोपयोग होता ही नाही ताते परमार्थ तैं इनके कारणकार्यपना है नाहीं ।जैसे अल्परोग निरोग होनेका कारण नही, और भला नही तैसे शुभोपयोग भी रोग समान है भला नहीं है । ( मो० प्र० देहली पृष्ठ ३७५ से ७७ ) - सभी सम्यग्दृष्टिको ऐसा श्रद्धान होता है, परन्तु उसका अर्थ ऐसा नही है कि वे व्यवहार धर्मको मिथ्यात्व समझते हों; और ऐसा भी नही है कि उसे सच्चा मोक्षमार्ग समझते हों । १६ - प्रश्न - शास्त्रमें प्रथम तीन गुणस्थानोंमें अशुभोपयोग और ४–५ ६, गुणस्थानमे अकेला शुभोपयोग कहा है वह तारतम्यताकी अपेक्षा से है या - मुख्यता की अपेक्षासे है ? उत्तर- वह कथन तारतम्यता अपेक्षा नही है परन्तु मुख्यताकी अपेक्षा से कहा है ( मो० मा० प्रकाशक, पृष्ठ ४०१, दे० ) इस सम्बन्ध मे विस्तारसे देखना हो तो प्रवचनसार ( रायचन्द्र ग्रन्थमाला ) श्र० ३ गाथा ४८ श्री जयसेनाचार्यकी टीका पृष्ठ ३४२ मे देखो । २०-- प्रश्न - शास्त्रमे कई जगह शुभ और शुद्ध परिणामसे कर्मोंका क्षय होता है ऐसा कथन है, अब शुभ तो श्रीदयिक भाव है-बन्धका कारण
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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