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________________ २२६ मोक्षशास्त्र ९. इस सत्र में नय-प्रमाणकी विवक्षा वर्तमान पर्याय' और उसके अतिरिक्त जो द्रव्य सामान्य तथा उस के गुणोंका सादृश्यतया त्रिकाल ध्रुवरूपसे बने रहना', ऐसे २ पहलू प्रत्येक द्रव्यमे हैं, आत्मा भी एक द्रव्य है, इसलिए उसमें भी ऐसे दो पहलू है, उनमें से वर्तमान पर्यायका विषय करनेवाला पर्यायाथिकनय है। इस सूत्र में कथित पाँच भावोंमेसे औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपमिक और औदयिक यह चार भाव पर्यायरूप-वर्तमान अवस्थामात्रके लिये हैं इसलिये वे पर्याथाथिकनयका विषय हैं; उस वर्तमान पर्यायको छोड़कर द्रव्य-सामान्य तथा उसके अनंतगुणोंका जो सादृश्यता त्रिकाल ध्रुवरूप स्थिर रहना है उसे पारिरणामिकभाव कहते हैं, उस भावको कारणपरमात्मा, कारणसमयसार पा ज्ञायकभाव भी कहा जाता है; वह त्रिकाल सादृश्यरूप होनेसे द्रव्यार्थिकनयका विषय है यह दोनों पहलू (पर्यायाथिकनयका विषय और द्रव्यार्थिकनयका विषय दोनों) एक होकर संपूर्ण जीव द्रव्य है, इसलिये वे दोनों पहलू प्रमाणके विषय हैं। इन दोनों पहलुओंका नय और प्रमाणके द्वारा यथार्थ ज्ञान करके जो जीव अपनी वर्तमान पर्यायको अपने प्रभेद कालिक पारिणामिकभावकी ओर ले जाता है उसे सम्यग्दर्शन होता है और वह क्रमशः स्वभावके अवलंबनसे आगे बढ़कर मोक्षदशारूप क्षायिकभावको प्रगट करता है ॥१॥ ___ भावोंके भेद द्विनवाष्टादशैकशितित्रिभेदाः यथाक्रमम् ॥२॥ अर्थ-उपरोक्त पाँच भाव [यथाक्रमम् ] क्रमशः [ द्वि नव प्रष्टादश एकविंशति त्रिभेदाः ] दो, नव, अट्ठारह, इक्कीस और तीन भेदवाले हैं। इन भेदोंका वर्णन आगेके सूत्रोंके द्वारा करते हैं ॥२॥ औपशमिकभावके दो भेद सम्यक्त्वचारित्रे ॥३॥
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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