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________________ १६४ मोक्षशास्त्र गुरुका श्रद्धान है । और रागादि रहित भावका नाम अहिंसा है, उसे वह उपादेय मानता है तथा अन्यको नही मानता यही उसका धर्मका श्रद्धान है । इसप्रकार तत्त्वार्थ - श्रद्धानमें अरहन्त देवादिका श्रद्धान भी गर्भित है । अथवा जिस निमित्तसे उसे तत्त्वार्थं श्रद्धान होता है उसी निमित्तसे अरहन्तदेवादिका भी श्रद्धान होता है, इसलिये सम्यग्दर्शन में देवादिके श्रद्धानका नियम है । (५) प्रश्न- - कोई जीव अरहन्तादिका श्रद्धान करता है, उनके गुरणोंको पहिचानता है फिर भी उसे तत्त्व श्रद्धानरूप सम्यक्त्व नहीं होता, इसलिये जिसे सच्चे अरहन्तादिका श्रद्धान होता है उसे तत्त्व श्रद्धान अवश्य होता ही है, ऐसा नियम संभवित नहीं होता । — उचर- - तत्त्व श्रद्धानके बिना वह अरिहन्तादिके ४६ आदि गुणों को जानता है, वहाँ पर्यायाश्रित गुणों को भी नही जानता; क्योकि जीवअजीवको जातिको पहिचाने बिना अरहन्तादिके आत्माश्रित और शरीराश्रित गुणोको वह भिन्न नही जानता, यदि जाने तो वह अपने आत्माको परद्रव्यसे भिन्न क्यों न माने ? इसलिये श्री प्रवचनसार में कहा है कि:-- जो जादि अरहंतं दव्वचगुणचपजयतेहिं । सो जाणदि अप्पाणं मोहो खलु जादि तस्सलयं ॥ ८० ॥ अर्थ — जो अरहन्तको द्रव्यत्व, गुरणत्व, और पर्यायत्वसे जानता है वह आत्माको जानता है ओर उसका मोह नाशको प्राप्त होता है इसलिये जिसे जीवादि तत्त्वोंका श्रद्धान नही है उसे अरहन्तादिका भी सच्चा श्रद्धान नही है । और वह मोक्षादि तत्त्वोके श्रद्धानके विना श्ररहन्तादिका माहात्म्य भी यथार्थं नहीं जानता । मात्र लौकिक अतिशयादिसे अरहन्तका, तपश्चरणादिसे गुरुका श्रीर परजीवोंकी अहिंसादिसे धर्मका माहात्म्य जानता है किन्तु यह तो पराश्रितभाव है और अरिहन्तादिका स्वरूप तो आत्माश्रित भावों द्वारा तत्त्वश्रद्धान होते ही ज्ञात होता है, इसलिये जिसे अरहन्तादि का सच्चा श्रद्धान होता है उसे तत्त्व श्रद्धान अवश्य होता है, ऐसा नियम समगना चाहिए । इसप्रकार सम्यक्त्वका लक्षण निर्देश किया है ।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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