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________________ १५३ मोक्षशास्त्र प्रश्न-कुछ जीवोंको गृहस्थ दशामें मिथ्यात्व दूर होकर सम्यग्दर्शन हो जाता है, उसे कैसा सम्यग्दर्शन समझना चाहिए ? उत्तर-केवल श्रद्धागुणकी अपेक्षासे निश्चयसम्यग्दर्शन और श्रद्धा तथा चारित्र गुणकी एकत्वकी अपेक्षासे व्यवहारसम्यग्दर्शन समझना चाहिये । इसप्रकार गृहस्थ दशामें जो निश्चयसम्यग्दर्शन है वह कथंचित् निश्चय और कथंचित् व्यवहार सम्यग्दर्शन है-ऐसा जानना चाहिए । प्रश्न-उस निश्चय सम्यग्दर्शनको श्रद्धा और चारित्रकी एकत्वापेक्षासे व्यवहारसम्यग्दर्शन क्यों कहा है ? उचर-सम्यग्दृष्टि जीव शुभरागको तोड़कर वीतराग चारित्रके साथ अल्प कालमें तन्मय हो जायगा, इतना सम्बन्ध बतानेके लिये उस निश्चय सम्यग्दर्शनको श्रद्धा और चारित्रको एकत्व अपेक्षासे व्यवहार सम्यग्दर्शन कहा जाता है। सातवे और आगेके गुणस्थानमें सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्रकी एकता होती है इसलिये उस समयके सम्यक्त्वमें निश्चय और व्यवहार ऐसे दो भेद नहीं होते, इसलिये वहाँ जो सम्यक्त्व होता है उसे 'निश्चयसम्यग्दर्शन' ही कहा जाता है । (देखो परमात्मप्रकाश अध्याय १ गाथा ८५ नीचेकी संस्कृत तथा हिन्दी टीका, दूसरी आवृत्ति पृष्ठ ६० तथा परमात्मप्रकाश अध्याय २ गाथा १७-१८ के नीचेकी संस्कृत तथा हिन्दी टीका, दूसरी आवृत्ति पृष्ठ १४६१४७ भोर हिन्दी समयसारमे श्रीजयसेनाचार्यकी संस्कृत टीका गाथा १२११२५ के नीचे पृष्ठ १८६ तथा हिन्दी समयसारको टीकामें श्री जयसेनाचार्यकी टीकाका अनुवाद पृष्ठ ११६ ) - अन्तमें - पुण्यसे धर्म होता है और आत्मा पर द्रव्यका कुछ भी कर सकता है-यह वात श्री वीतरागदेवके द्वारा प्ररूपित धर्मकी मर्यादाके चाहर है।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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