SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५४ मोक्षशास्त्र सम्यग्दर्शन और ज्ञानचेतनामें अन्तर प्रश्न-जबतक आत्माकी शुद्धोपलब्धि है तबतक ज्ञान ज्ञानचेतना है और उतना ही सम्यग्दर्शन है, यह ठीक है? उत्तर-आत्माके अनुभवको शुद्धोपलब्धि कहते हैं, वह चारित्रगुण की पर्याय है । जव सम्यग्दृष्टि जीव अपने शुद्धोपयोगमें युक्त होता है अर्थात् स्वानुभवरूप प्रवृत्ति करता है तब उसे सम्यक्त्व होता है, और जब शुद्धोपयोगमे युक्त नही होता तब भा उसे ज्ञानचेतना लब्धरूप होती है। जब ज्ञानचेतना अनुभवरूप होती है तभी सम्यग्दर्शन होता है और जब अनुभवरूप नही होती तब नही होता-इसप्रकार मानना बहुत बड़ी भूल है। क्षायिक सम्यक्त्वमे भी जीव शुभाशुभरूप प्रवृत्ति करे या स्वानुभवरूप प्रवृत्ति करे, किन्तु सम्यक्त्वगुण तो सामान्य प्रवर्त्तनरूप ही है। [देखो, पं० टोडरमलजीको रहस्यपूर्ण चिट्ठी] ___ सम्यग्दर्शन श्रद्धागुणकी शुद्ध पर्याय है । वह क्रमशः विकसित नहीं होता किन्तु अक्रमसे एकसमयमे प्रगट हो जाता है । और सम्यग्ज्ञानमें तो होनाधिकता होती है किन्तु विभावभाव नही होता । चारित्रगुण भी क्रमशः विकसित होता है । वह अंशतः शुद्ध और अंशतः अशुद्ध (रागद्वेषवाला) निम्नदगामें होता है, अर्थात् इसप्रकारसे तीनों गुणोंकीशुद्ध पर्यायके विकास में अंतर है। -२४सम्यश्रद्धा करनी ही चाहिये चारित्र न पले फिर भी उसकी श्रद्धा करनी चाहिए दन पाट की २२ वी गाथामें भगवान श्री सुन्दकुन्दाचार्यदेवने गहापि.-"यदि (हम गारते हैं वह) करने को ममयं हो तो करना, और गदि करनेमें गम न हो तो सन्नी श्रद्धा अवश्य करना, क्योकि केवली भगगना असा परलेगलेको सम्यगत्व महा है।"
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy