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________________ मोक्षशास्त्र उत्तरः——सम्यग्दर्शनके यह भेद निमित्तादिकी अपेक्षासे कहे गए हैं श्रात्मानुशासनमे दश प्रकारसे सम्यक्त्वके जो भेद कहे गये हैं उनमें से आठ भेद सम्यग्दर्शन प्रगट होनेसे पूर्व जो निमित्त होते है उनका ज्ञान करानेके लिए कहे है, और दो भेद ज्ञानके सहकारीपनकी अपेक्षासे कहे हैं । श्रुत केवलीको जो तत्त्वश्रद्धान है उसे अवगाढ़ सम्यग्दर्शन कहते हैं, और केवली भगवानको जो तत्त्वश्रद्धान है उसे परमावगाढ सम्यग्दर्शन कहा जाता है, इसप्रकार आठ भेद निमित्तोकी अपेक्षासे और दो भेद ज्ञानकी अपेक्षासे है । ' दर्शनकी' अपनी अपेक्षासे वे भेद नही है । उन दशों प्रकारमें सम्यग्दर्शनका स्वरूप एक ही प्रकारका होता है, - ऐसा समझना चाहिए, [ दे० का मोक्षमाग प्रकाशक श्र० ६ पृ० ४६३ ] प्रश्न- यदि चौथे गुणस्थानसे सिद्ध भगवान तक सभी सम्यग्दृष्टियों के सम्यग्दर्शन एकसा है तो फिर केवली भगवानके परमावगाढ सम्यग्दर्शन क्यो कहा है ? १३२ उत्तर:- - जैसे छद्मस्थको श्रुतज्ञानके अनुसार प्रतीति होती है उसीप्रकार केवली और सिद्ध भगवानको केवलज्ञानके अनुसार ही प्रतीति होती है । चौथे गुणस्थानमे सम्यग्दर्शनके प्रगट होने पर जो आत्मस्वरूप निर्णीत किया था वही केवलज्ञानके द्वारा जाना गया, इसलिए वहाँ प्रतीतिमें परमावगाढ़ता कहलाई, इसीलिए वहाँ परमावगाढ सम्यक्त्व कहा है । किन्तु पहिले जो श्रद्धान किया था उसे यदि केवलज्ञानमें मिथ्या जाना होता तब तो छद्यस्थको श्रद्धा श्रप्रतीतिरूप कहलातो, किन्तु आत्मस्वरूपका जैसा श्रद्धान छद्मस्थको होता है वैसा ही केवली और सिद्धभगवानको भी होता है; -- तात्पर्य यह है कि मूलभूत जीवादिके स्वरूपका श्रद्धान जैसा छद्मस्थ को होता है वैसा ही केवलीको भी होता है । (१७) सम्यक्त्व निर्मलताका स्वरूप श्रमिक सम्यक्त्व वर्तमानमे क्षायिकवत् निर्मल है । क्षायोपशमिय सम्यक्त्वमें समल तत्त्वार्थ श्रद्धान होता है । यहाँ जो मलस्व है
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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