SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६ अन्यथा निरूपे है बहुरि शुद्धमय जो निश्चय है, सो भूतार्थ है । जैसा वस्तुका स्वरूप है तैसा निरूप है, ऐसे इन दोऊनिका ( दोनों नयका ) स्वरूप तो विरुद्धता लिए है । ( मो० मा० प्रकाशक पृष्ठ ३६६ ) प्रवचनसार गाथा २७३-७४ में तथा टीकामें भी कहा है कि 'मोक्ष तत्त्वका साधनतत्त्व 'शुद्ध ही है' और वही चारों अनुयोगोंका सार है ? १३- निश्चय सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्रसे मिथ्यादर्शन ज्ञानचारित्र तो विरुद्ध है ही, परन्तु निश्चय सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्रसे व्यवहारा सम्यग्दर्शन -: - ज्ञान - चारित्रका स्वरूप तथा फल परस्पर विरुद्ध है इसलिये ऐसा निर्णय करनेके लिये कुछ आधार निम्नोक्त दिये जाते हैं १- श्री नियमसारजी ( गुजराती अनुवादित ) पत्र नं० १४६ निश्चय प्रतिक्रमण अधिकारको गाथा, ७७ से ८१ की भूमिका, २- नियमसार गाथा ६१ पत्र १७३ कलश नं० १२२. ३ ६२ 19 १७५ टीका ४ 19 ८ E १० ११ १२ १३ 13 11 # "" "1 "" " 11 " 11 11 १०६, २१५ कलश - १५५ नीचेकी टोका, १२१, २४४ टीका, १२३ " २४६ टीका, १२८" 32 31 11 गाथा ११ टोका पत्र नं० १२-१३ ४-५ 21 " 31 ७ १३ को भूमिका तथा टीका पत्र, १४- १५, ७६ टोका, पत्र, ८८-८ ६२ Sayu "" १५९-६० टीका तथा फुटनोट, 19 १४१ २८२ गाथा, १४१ की भूमिका, प्रवचनसारजी ( पाटनी ग्रन्थमाला ) में देखो: " 23 ―
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy