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________________ अध्याय १ सूत्र ३३ १११ है उसे एवंभूतनय कहते है जैसे पुजारीको पूजा करते समय ही पुजारी कहना । [ Active ] पहिले तीन भेद द्रव्यार्थिकनयके है, उसे सामान्य उत्सर्ग अथवा अनुवृत्ति नामसे भी कहा जाता है । वादके चार भेद पर्यायार्थिकनयके है, उसे विशेष, अपवाद अथवा व्यावृत्ति नामसे कहते हैं । पहिले चार नय अर्थनय है, और बादके तीन शब्दनय है । पर्याय के दो भेद है- (१) सहभावी - जिसे गुरण कहते हैं, (२) क्रमभावी - जिसे पर्याय कहते हैं । द्रव्य नाम वस्तुग्रोका भी है और वस्तुओके सामान्य स्वभावमय एक स्वभावका भी है । जब द्रव्य प्रमाणका विषय होता है तब उसका अर्थ वस्तु ( द्रव्य - गुरण और तीनो कालकी पर्याय सहित ) करना चाहिए । जब नयोके प्रकररणमे द्रव्यार्थिकका प्रयोग होता है तब 'सामान्य स्वभावमय एक स्वभाव' ( सामान्यात्मक धर्म ) अर्थं करना चाहिए । द्रव्यार्थिकमे निम्नप्रकार तीन भेद होते है । होते है । १ - सत् और असत् पर्यायके स्वरूपमें प्रयोजनवश परस्पर भेद न मानकर दोनोको वस्तुका स्वरूप मानना सो नैगमनय है । २ -सत् के ग्रन्तर्भेदो मे भेद न मानना सो सग्रहनय है । ३- सन्मे अन्तर्भेदोको मानना सो व्यवहारनय है । नयके ज्ञाननय, शब्दनय और अर्थ नय, - ऐसे भी तीन प्रकार १ - वास्तविक प्रमाणज्ञान है; और जब वह एकदेशग्राही होता है तब उसे नय कहते है, इसलिये ज्ञानका नाम नय है और उसे ज्ञान नय कहा जाता है । २- ज्ञानके द्वारा जाने गये पदार्थका प्रतिपादन शब्द के द्वारा होता है इसलिये उस शब्दको शब्दनय कहते है ।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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