SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११० मोक्षशास्त्र २-संग्रहनय-जो समस्त वस्तुओंको तथा समस्त पर्यायोंको संग्रह रूप करके जानता है तथा कहता है सो संग्रहनय है । जैसे सत् द्रव्य, इत्यादि [ General, Common] ३-व्यवहारनय-अनेक प्रकारके भेद करके व्यवहार करे या भेदे सो व्यवहारनय है। जो संग्रहनयके द्वारा ग्रहण किये हुए पदार्थको विधिपूर्वक भेद करे सो व्यवहार है जैसे सत्के दो प्रकार हैं-द्रव्य और गुण । द्रव्यके छह भेद हैं--जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल । गुणके दो भेद हैं सामान्य और विशेष । इसप्रकार जहांतक भेद हो सकते है वहाँतक यह नय प्रवृत्त होता है। [Distributive ] ४-ऋजुसूत्रनय-[ ऋजु अर्थात् वर्तमान, उपस्थित, सरल ] , जो ज्ञानका अंश वर्तमान पर्यायमात्रको ग्रहण करे सो ऋजुसूत्रनय है । ( Present condition) ५-शब्दनय-जो नय लिंग, संख्या, कारक आदिके व्यभिचारको दूर करता है सो शब्द नय है। यह नय लिंगादिके भेदसे पदार्थको भेदरूप ग्रहण करता है; जैसे दार, (पु०) भार्या (स्त्री०) कलत्र (न०), यह दार भार्या और कलत्र तीनों शब्द भिन्न लिंगवाले होनेसे यद्यपि एक ही पदार्थके वाचक हैं तथापि यह नय स्त्री पदार्थको लिंगके भेदसे तीन भेदरूप जानता है । [ Descriptive ] ६-समभिरूढनय-(१) जो भिन्न २ अर्थोका उल्लंघन करके एक अर्थको रूढ़िसे ग्रहण करे। जैसे गाय [Usage] (२) जो पर्यायके भेदसे अर्थको भेदरूप ग्रहण करे। जैसे इन्द्र, शक्र, पुरंदर; यह तीनो शब्द इन्द्रके नाम हैं किन्तु यह नय तीनोंका भिन्न २ अर्थ करता है । [Specific ७-एवंभूतनय-जिस शब्दका जिस क्रियारूप अर्थ है उस क्रियारूप परिणमित होनेवाले पदार्थको जो नय ग्रहण करता
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy