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________________ मोक्षशास्त्र (३) अवधिज्ञानके प्रतिपाति, x प्रतिपाति, देशावधि, परमावधि और सर्वावधि भेद भी है । ६० (४) जघन्य - देशावधि संयत तथा असंयत मनुष्यों और तियंचोंके होता है । देव - नारकीको नही होता ) उत्कृष्ट देशावधि सयत भावमुनिके ही होता है - अन्य तीर्थंकरादि गृहस्थ- मनुष्य, देव, नारकीके नही होता; उनके देशावधि होता है । (५) देशावधि उपरोक्त ( पैरा १ में कहे गये ) छह प्रकार तथा प्रतिपाति और अप्रतिपाति ऐसे आठ प्रकार का होता है । परमावधि - अनुगामी, अननुगामी, वर्धमान, अवस्थित, अनवस्थित और प्रतिपाति होता है । (६) अवधिज्ञान रूपी - पुद्गल तथा उस पुगलके सम्बन्धवाले संसारी जीव ( के विकारी भाव ) को प्रत्यक्ष जानता है । (७) द्रव्य अपेक्षासे जघन्य अवधिज्ञानका विषय एक जीवके श्रीदारिक शरीर संचयके लोकाकाश-प्रदेश प्रमाण- खंड करने पर उसके एक खंड तकका ज्ञान होता है । द्रव्यापेक्षा से सर्वावधिज्ञानका विषय -- एक परमाणु तक जानता है [ देखो सूत्र २८ की टीका ] द्रव्यापेक्षा से मध्यम अवधिज्ञानका विषय जघन्य और उत्कृष्टके बीचके द्रव्योंके भेदोको जानता है । क्षेत्रापेक्षा जघन्य अवधिज्ञानका विषय उत्सेधांगुलके [ आठ यव मध्यके ] असख्यातवें भाग तकके क्षेत्रको जानता है । --- क्षेत्र अपेक्षासे उत्कृष्ट अवधिज्ञानका विषय – असंख्यात लोकप्रमाण तक क्षेत्रको जानता है । * प्रतिपाति = जो गिर जाता है । x श्रप्रतिपाति = जो नही गिरता । ÷ जघन्य = सबसे कम ।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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