SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय १ सूत्र २२ क्षयोपशमनिमिas अवधिज्ञानके भेद तथा उनके स्वामीक्षयोपशमनिमित्तः षड्विकल्पः शेषाणाम् || २२ || श्रथं-- [ क्षयोपशमनिमित्तः ] क्षयोपशमनैमित्तक अवधिज्ञान [ षड्विकल्पः ] अनुगामी, अननुगामी, वर्धमान, हीयमान, अवस्थित और अनवस्थित-ऐसे छह भेदवाला है, श्रौर वह [ शेषाणाम् ] मनुष्य तथा तियंचोंके होता है | ८६ टीका (१) अनुगामी जो अवधिज्ञान सूर्यके प्रकाशकी भांति जीवके साथ ही साथ जाता है उसे अनुगामी कहते हैं । -- अननुगामी- - जो अवधिज्ञान जीवके साथ ही साथ नही जाता उसे अनुगामी कहते है | - वर्धमान – जो अवधिज्ञान शुक्ल पक्ष के चन्द्रमाकी कलाकी भांति बढ़ता रहे उसे वर्धमान कहते है । हीयमान - जो श्रवधिज्ञान कृष्ण पक्षके चन्द्रमाको कलाके माफिक घटता रहे उसे हीयमान कहते है । अवस्थित — जो अवधिज्ञान एकसा रहे, न घटे न बढे उसे अवस्थित कहते है । अनवस्थित--जो पानीकी तरंगोको भाँति घटता बढता रहे, एकसा न रहे उसे अनवस्थित कहते हैं । ( २ ) यह अवधिज्ञान मनुष्योंको होता है ऐसा कहा गया है, तीर्थंकरोको नही लेना चाहिए, उनके अतिरिक्त अन्य मनुष्योको मना चाहिए, वह भी बहुत थोड़ेसे मनुष्योको होता है । इस प्रति 'गुणप्रत्यय' भी कहा जाता है । वह नाभिके ऊपर दस, पद्म, स्व कलश, मछली आदि शुभ चिह्नोंके द्वारा होता है । १२
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy