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________________ अध्याय १ सूत्र २० ८७ पदार्थका मनके द्वारा जिस विशेषतासे ज्ञान होता है वह श्रुतज्ञान है, इसलिये दोनों ज्ञान एक नही किन्तु भिन्न २ है | विशेष स्पष्टीकरण - १ - इंद्रिय और मनके द्वारा यह निश्चय किया कि यह 'घट' है सो यह मतिज्ञान है, तत्पश्चात् उस घड़ेसे भिन्न, अनेक स्थलों और अनेक कालमे रहनेवाले अथवा विभिन्न रंगोंके समान जातीय दूसरे घड़ों का ज्ञान करना श्रुतज्ञान है । एक पदार्थको जाननेके बाद समान जातीय दूसरे प्रकारको जानना सो श्रुतज्ञानका विषय है । अथवा - २ - इन्द्रिय और मनके द्वारा जो घटका निश्चय किया, तत्पश्चात् उसके भेदोका ज्ञान करना सो श्रुतज्ञान है, जैसे-अमुक घड़ा, अमुक रंगका है, अथवा घड़ा मिट्टीका है, ताबेका है, पीतलका है; इसप्रकार इन्द्रिय और मनके द्वारा निश्चय करके उसके भेद प्रभेदको जाननेवाला ज्ञान श्रुतज्ञान है । उसी ( मतिज्ञानके द्वारा जाने गये) पदार्थके भेद प्रमेद का ज्ञान भी श्रुतज्ञान है । अथवा- ३- 'यह जीव है' या 'यह अजीव है' ऐसा निश्चय करनेके बाद जिस ज्ञानसे सत् - संख्यादि द्वारा उसका स्वरूप जाना जाता है वह श्रुतज्ञान है; क्योकि उस विशेष स्वरूपका ज्ञान इन्द्रिय द्वारा नही हो सकता, इसलिये वह मतिज्ञानका विषय नही किन्तु श्रुतज्ञानका विषय है । जीव-अजीवको जाननेके बाद उसके सत्संख्यादि विशेषोका ज्ञानमात्र मनके निमित्तसे होता है । मतिज्ञानमे एक पदार्थके अतिरिक्त दूसरे पदार्थका या उसी पदार्थ के विशेषोंका ज्ञान नही होता; इसलिये मतिज्ञान और श्रुतज्ञान भिन्न भिन्न हैं । अवग्रहके बाद ईहाज्ञानमें उसी पदार्थका विशेष ज्ञान है और ईहाके बाद अवायमें उसी पदार्थका विशेष ज्ञान है; किन्तु उसमे ( ईहा या अवाय, में ) उसी पदार्थके भेद प्रभेदका ज्ञान नही है, इसलिये वह मतिज्ञान हैश्रुतज्ञान नही । (अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा मतिज्ञानके भेद हैं । ) सूत्र ११ से २० तकका सिद्धांत जीवको सम्यग्दर्शन होते ही सम्यक्मति और सम्यक् तज्ञान होता
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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