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________________ मोक्षशास्त्र अंगबाह्य श्रुतमें चौदह प्रकीर्णक होते हैं । इन बारह अंग और चौदह पूर्व की रचना, जिस दिन तीर्थकर भगवानकी दिव्यध्वनि खिरती है तब भावश्र तरूप पर्यायसे परिणत गणधर भगवान एक ही मुहूर्त में क्रमसे करते हैं । ८६ (१५) यह सब शास्त्र निमित्तमात्र है, भावश्र तज्ञानमें उसका अनुसरण करके तारतम्य होता है, ऐसा समझना चाहिये । - (१६) मति और श्रुतज्ञानके बीच का भेद प्रश्न - जैसे मतिज्ञान इन्द्रिय और मनसे उत्पन्न होता है उसीप्रकार श्र ुतज्ञान भी इन्द्रिय और मनसे उत्पन्न होता है, तब फिर दोनोंमें अन्तर क्या है ? - शंकाकार के कारण- - इन्द्रिय और मनसे मतिज्ञानकी उत्पत्ति होती यह प्रसिद्ध है, और श्रुतज्ञान वक्ताके कथन और श्रोताके श्रवणसे उत्पन्न होता है, इसलिये वक्ताकी जीभ और श्रोताके कान तथा मन श्रुतज्ञानकी उत्पत्तिमें कारण हैं; इसप्रकार मति श्रत दोनोंके उत्पादक कारण इन्द्रिय और मन हुए, इसलिये उन दोनोको एक मानना चाहिए । उतर - मतिज्ञान और श्र ुतज्ञानको एक मानना ठीक नही है । मतिज्ञान और श्रुतज्ञान दोनों इन्द्रियों और मनसे उत्पन्न होते है यह हेतु प्रसिद्ध है, क्योकि जीभ और कानको श्र ुतज्ञानकी उत्पत्तिमे कारण मानना भूल है । जीभ तो शब्दका उच्चारण करनेमें कारण है, श्रुतज्ञानकी उत्पत्ति मे नहीं । कान भी जीवके होनेवाले मतिज्ञानकी उत्पत्तिमें कारण हैं, श्रुतज्ञानकी उत्पत्ति में नही, इसलिये श्र ुतज्ञानकी उत्पत्तिमें दो इन्द्रियोंको कारण बताना, और मति तथा श्रुतज्ञान दोनोंको इन्द्रियों और मनसे उत्पन्न कहकर दोनो की एकता मानना मिथ्या है । वे दो इन्द्रियाँ श्र ुतज्ञानमें निमित्त नही हैं, इसप्रकार मति और श्रुतज्ञानको उत्पत्तिके काररणमें भेद है । मतिज्ञान इन्द्रियों और मनके कारण उत्पन्न होता है, और जिस पदार्थका इन्द्रियों तथा मनके द्वारा मतिज्ञानसे निर्णय हो जाता है उस
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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