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________________ ६४ - मोक्षशास्त्र एक द्रव्य दूसरे द्रव्यमें (पर द्रव्यमें) अकिंचित्कर है, अर्थात् कुछ भी नहीं कर सकता । अन्य द्रव्यका अत्य द्रव्यमे कदापि प्रवेश नही है और न अन्य द्रव्य अन्य द्रव्यकी पर्यायका उत्पादक ही है; क्योकि प्रत्येक वस्तु अपने अंतरंगमें अत्यन्त (संपूर्णतया) प्रकाशित है, परमे लेश मात्र भी नही है । इसलिए निमित्तभूत वस्तु उपादानभूतवस्तुका कुछ भी नहीं कर सकती। उपादानमे निमित्तकी द्रव्यसे, क्षेत्रसे, कालसे और भावसे नास्ति है, और निमित्तमें उपादानकी द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावसे नास्ति है; इसलिए एक 'दूसरे को क्या कर सकते हैं ? यदि एक वस्तु दूसरी वस्तुका कुछ करने लगे तो वस्तु अपने वस्तुत्वको ही खो बैठे; किन्तु ऐसा हो ही नहीं सकता। [निमित्त संयोगरूपकारण; उपादान-वस्तुकी सहज शक्ति ] दशवे सूत्रकी टीकामें निमित्त-उपादान सम्बन्धी स्पष्टीकरण किया है वहाँ से विशेष समझ लेना चाहिये। उपादान-निमित्त कारण - प्रत्येक कार्यमे दो कारण होते हैं (१) उपादान, (२) निमित्त । इनमेसे उपादान तो निश्चय (वास्तविक) कारण है और निमित्त व्यवहारआरोप-कारण है, अर्थात् वह (जब उपादान कार्य कर रहा हो तब वह उसके) अनुकूल उपस्थितरूप (विद्यमान) होता है। कार्यके समय निमित्त होता है किन्तु उपादानमें वह कोई कार्य नही कर सकता, इसलिये उसे व्यवहार कारण कहा जाता है। जब कार्य होता है तब निमित्तको उपस्थितिके दो प्रकार होते हैं ( १) वास्तविक उपस्थिति (२) काल्पनिक उपस्थिति । जब छद्मस्थ जीव विकार करता है तव द्रव्यकर्मका उदय उपस्थितरूप होता ही है, वहाँ द्रव्यकर्मका उदय उस विकार का वास्तविक उपस्थितिरूप निमित्त कारण है। [यदि जीव विकार न करे तो वही द्रव्यकर्मकी निर्जरा हुई कहलाती है। ] तथा जीव जव विकार करता है तव नो कर्मकी उपस्थिति वास्तवमें होती है अथवा कल्पनारूप होती है।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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