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________________ मोक्षशास्त्र नवग्रैवेयकोंमें ऊपरके देवोंका आगमन नहीं होता इसीलिये वहाँ महाऋद्धिदर्शन कारण नही है । तथा ये विमानवासी देव प्रष्टाह्निक पर्व महोत्सव देखने के लिये नंदीश्वरादि द्वीपोंमें नहीं जाते इसलिये वहाँ जिनमहिमा दर्शन भी कारण नही है । वे अवधिज्ञानके बलसे जिनमहिमाको देखते हैं तो भी इन देवोके रागकी न्यूनता अर्थात् मंद राग होनेसे जिनमहिमा दर्शनसे उनको विस्मय उत्पन्न नही होता । ( श्री धवला पुस्तक ६ पृष्ठ ४३२ से ४३६ ) (४) अधिकरण - सम्यग्दर्शनका अंतरंग आधार आत्मा है और बाह्य आधार त्रसनाली है ( लोकाकाशके मध्यमें चौदह राजू लम्बे और एक राजू चौड़े स्थानको त्रसनाली कहते हैं । ) ४६ (५) स्थिति - तीनों प्रकारके सम्यग्दर्शनको जघन्य से जघन्य स्थिति अंतर्मुहूर्त की है, भोपशमिक सम्यग्दर्शनकी उत्कृष्ट स्थिति भी अंतर्मुहूर्त की है क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शनकी उत्कृष्ट स्थिति ६६ सागरकी और क्षायिक सम्यग्दर्शनकी सादि अनन्त है, तथा संसारमें रहनेको अपेक्षासे उसको उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागर तथा अंतर्मुहूर्त सहित आठ वर्ष कम दो कोडी पूर्व है । (६) विधान - सम्यग्दर्शन एक तरह अथवा स्वपर्यायकी योग्यतानुसार तीन प्रकार है- औपशमिक, क्षायोपशमिक और क्षायिक । तथा श्राज्ञा, मार्ग, बीज, उपदेश, सूत्र, संक्षेप, विस्तार, अर्थ अवगाढ़ और परमावगाढ़ इस तरह १० भेदरूप है ॥ ७ ॥ और भी अन्य अमुख्य उपाय सत्संख्या क्षेत्रस्पर्शन कालान्तरभावाल्पबहुत्वैश्च ॥ ८॥ अर्थ--[च] और [ सत् संख्या क्षेत्र स्पर्शन काल अन्तर भावाल्प बहुत्वः ] सत्, सख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव और अल्पबहुत्व इन आठ श्रनुयोगोके द्वारा भी पदार्थका ज्ञान होता है ।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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