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________________ अध्याय १ सूत्र ५ २७ द्रव्य निक्षेप-भूत और भविष्यत् पर्यायकी मुख्यताको लेकर उसे वर्तमानमें कहना-जानना सो द्रव्य निक्षेप है। जैसे श्रेणिक राजा भविष्यमें तीर्थंकर होंगे, उन्हे वर्तमानमे तीर्थंकर कहना-जानना, और भूतकालमे हो गये भगवान महावीरादि तीर्थंकरोंको वर्तमान तीर्थंकर मानकर स्तुति करना, सो द्रव्य निक्षेप है। भाव निक्षेप केवल वर्तमान पर्यायकी मुख्यतासे जो पदार्थ वर्तमान जिस दशामे है उसे उसरूप कहना-जानना सो भाव निक्षेप है । जैसे सीमंघर भगवान वर्तमान तीर्थकरके रूपमें महाविदेहमे विराजमान हैं उन्हे तीर्थंकर कहना-जानना, और भगवान महावीर वर्तमानमे सिद्ध है। उन्हें सिद्ध कहना-जानना सो भाव निक्षेप है । (४) जहाँ 'सम्यग्दर्शनादि' या 'जीवाजीवादि' शब्दोका प्रयोग किया गया हो वहां कौनसा निक्षेप लागू होता है, सो निश्चय करके जीवको सच्चा अर्थ समझ लेना चाहिये । सूत्र १ मे 'सम्यग्दर्शन-ज्ञान चारित्रारिण' तथा मोक्षमार्ग वह शब्द तथा सूत्र २, मे सम्यग्दर्शन वह शब्द भावनिक्षेपसे कहा है ऐसा समझना चाहिये । (५) स्थापनानिक्षेप और द्रव्यनिक्षेपमें भेद "In Sthapana the connotation is merely attributed. It is never there. It cannot be there. In dravya it will be there or has been there. The common factor between the two is that it is not there now, and to that extent connotation is fictitious in both." ( English Tatvarth Sutram, page-11) अर्थ-स्थापनानिक्षेपमें-बताना मात्र आरोपित है, उसमे वह (मूल वस्तु) कदापि नही है, वह वहाँ कदापि नही हो सकती। और द्रव्यनिक्षेपमें वह ( मूल वस्तु ) भविष्यमे प्रगट होगी अथवा भूतकालमे थी। दोनोके बीच सामान्यता इतनी है कि-वर्तमानकालमें वह दोनोमे विद्यमान नही है, और उतने अंशमें दोनोमें आरोप है। [-तत्त्वार्थसूत्र अंग्रेजी टीका, पृष्ठ ११ ]
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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