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________________ मगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन ८५ मनके साथ जिन नियोंका घर्षण होनेसे दिव्य ज्योति प्रकट होती है उन ध्वनियोके समुदायको मन्त्र कहा जाता है । मन्त्र और विज्ञान दोनोमें अन्तर है, क्योकि विज्ञानका प्रयोग जहाँ भी किया जाता है, फल एक ही होता है । परन्तु मन्यमें यह बात नहीं है, उसकी सफलता साधक और साध्यके ऊपर निर्भर है, ध्यानके अस्थिर होनेसे भी मन्त्र असफल हो जाता हूँ । मन्त्र तभी सफल होता है; जब श्रद्धा, इच्छा और दृढ सकल्प ये तीनों ही यथावत् कार्य करते हो । मनोविज्ञानका सिद्धान्त है कि मनुष्यकी अवचेतनायें बहुत-सी आध्यात्मिक शक्तियाँ भरी रहती है, इन्ही शक्तियो को मन्त्र द्वारा प्रयोगमें लाया जाता है । मन्त्रको ध्वनियोंके मघर्ष-द्वारा माध्यात्मिक शक्तिको उत्तेजित किया जाता है । इस कार्यमें अकेली विचारशक्ति ही काम नहीं करती है, इसको सहायता के लिए उत्कट इच्छा-शक्तिके द्वारा ध्वनि सचालनकी भी आवश्यकता है । मन्त्र शक्ति के प्रयोगको सफलताके लिए मानसिक योग्यता प्राप्त करनी पडती है, जिसके लिए नैष्टिक आचारको आवश्यकता है । मन्त्रनिर्माणके लिए ओं हां हीं हं ह्रीं हः हा हसः क्लीं क्लॅ द्वा ह्रीं द्रद्रः श्री क्षत्रों की हं अं फट् चपट्, सर्वोपट्, घे वै यः ठः सः हव्यं पं चं यात यंत्र आदि बीजाक्षरोको आवश्यकता होती है । साधारण व्यक्तिको ये बीजाक्षर निरर्थक प्रतीत होते हैं, किन्तु है ये सार्थक और इनमें ऐमी शक्ति अन्तनिहित रहती है, जिसमें आत्मशक्ति या देवताओको उत्तेजित किया जा सकता है | अतः ये धीजाक्षर जन्त. करण और वृत्तिकी शुद्ध प्रेरणा व्यक्त हैं. जिनमे मात्मिक शक्तिका विकास किया जा सकता है । मन्त्रशास्त्र और णमोकार मन्त्र इन घोजाक्षरॉकी उत्पत्ति प्रधानतः णमोकारमन्यसे ही हुई हैं क्योंकि मानूका ध्यनियाँ इसी मन्त्र से उद्भूत है । इन सबमें प्रधान 'भ' बोज है, यह आत्मवाचक मूलभूत है । इसे तेजोवीज, कामवोज और भववोज माना गया है। पंचपरमेष्ठी वाचक होनेसे ओोको समस्त मन्त्रीका सारतत्त्व
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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