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________________ ८२ मगलमन्त्र णमोकार · एक अनुचिन्तन करने में बडी सहायता मिलती है । णमोकार मन्त्रके उच्चारण, स्मरण, चिन्तन, मनन और ध्यान द्वारा मनपर इस प्रकारके सस्कार पढते हैं, जिससे जीवनमें श्रद्धा और विवेकका उत्पन्न होना स्वाभाविक है । क्योकि मनुष्यका जीवन श्रद्धा और सद्विचारोंपर हो अवलम्बित है, श्रद्धा और विवेकको छोडकर मनुष्य मनुष्यकी तरह जीवित नहीं रह सकता है अत जीवनको मूलप्रवृत्तियोका दमन या नियन्त्रण करनेके लिए महामंगल वाक्य णमोकार मन्त्रका स्मरण परम आवश्यक है । इस प्रकारके धार्मिक वाक्योंकेचिन्ननसे मूलप्रवृत्ति नियन्त्रित हो जाती हैं तथा जन्मजात स्वभावमें परिवर्तन हो जाता है । अत नियन्त्रणकी प्रवृत्ति धीरे-धीरे आती है । ज्ञानार्णवमें आचार्य शुभचन्द्रने बतलाया है कि महामंगल वाक्योको विद्युत्शक्ति आत्मामें इस प्रकारका झटका देती है, जिससे आहार, भय, मैथुन और परिग्रह जन्य सज्ञाएँ सहजमें परिष्कृत हो जाती हैं । जीवनके धरातलको उन्नत बनानेके लिए इस प्रकारके मगल वाक्योको जीवनमें उतारना परम आवश्यक है । अतएव जीवनको मूलप्रवृत्तियो के परिष्कार के लिए दमन क्रियाको प्रयोगमें लाना आवश्यक है । इससे मूलप्रवृत्तियाँ कुछ · मूलप्रवृत्तियोके परिवर्तनका दूसरा उपाय विलयन है । यह दो प्रकार से हो सकता है - निरोप द्वारा ओर विशेष द्वारा । निरोधका तात्पर्य है कि प्रवृत्तियोंको उत्तेजित होने का ही अवसर न देना। समयमें नष्ट हो जाती हैं । विलियम जेम्सका कथन है कि यदि किसी प्रवृत्तिको अधिक काल तक प्रकाशित होनेका अवसर न मिले तो वह नष्ट हो जाती है । अत धार्मिक आस्था द्वारा व्यक्ति अपनी विकार प्रवृत्तियोंको अवरुद्ध कर उन्हें नष्ट कर सकता है। दूसरा उपाय जो कि विरोध द्वारा प्रवृत्तियोके विलयन के लिए कहा गया है, उसका अर्थ यह है कि जिस समय एक प्रवृत्ति कार्य कर रही हो, उसी समय उसके विपरीत दूसरी प्रवृत्तिको उत्तेजित होने देना । ऐसा करने से दो पारस्परिक विरोधी प्रवृत्तियों के एक साथ उभडने से दोनोका बल घट जाता है । इस तरह दोनोके प्रकाशनकी -- '
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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