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________________ मगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन ८१ उत्सुकता, रचना, सग्रह, विकर्षण, शरणागत होना, काम प्रवृत्ति, शिशुरक्षा, दूसरोंकी चाह, आत्म-प्रकाशन, विनीतता और हँसना ये चोदह मूलप्रवृत्तियाँ पायी जाती हैं । इन मूलप्रवृत्तियांका अस्तित्व ससारके सभी प्राणियोमे पाया जाता है, पर मनुष्यकी मूलप्रवृतियोंमें यह विशेषता है कि मनुष्य इनमें समुचित परिवर्तन कर लेता है । केवल मूलप्रवृत्तियो द्वारा संचालित जोवन असभ्य और पाशविक कहलायेगा । अत मूलप्रवृत्तियो में Repression दमन, Inhibition विलयन, Redirection मार्गान्तरीकरण और Sublimation शोधन ये चार परिवर्तन होते रहते हैं । प्रत्येक मूलप्रवृत्तिका वल उसके बराबर प्रकाशित होने से बढता है । यदि किसी मूलप्रवृत्तिके प्रकाशनपर कोई नियन्त्रण नहीं रखा जाता है, तो वह मनुष्य के लिए लाभकारी न बनकर हानिप्रद हो जाती है । अत दमनकी क्रिया होनी चाहिए । उदाहरणार्थ यो कहा जाता है कि संग्रहकी प्रवृत्ति यदि सयमित रूपमें रहे तो उससे मनुष्यके जीवनकी रक्षा होती है, किन्तु जब यह अधिक वढ जाती है तो कृपणता और चोरीका रूप धारण कर लेती है, इसी प्रकार द्वन्द्व या युद्धको प्रवृत्ति प्राण-रक्षा के लिए उपयोगी है, किन्तु जब यह अधिक बढ जाती है तो यह मनुष्यकी रक्षा न कर उसके विनाशका कारण बन जाती है। इसी प्रकार अन्य मूलप्रवृत्तियोके सम्बन्धमें भी कहा जा सकता है । अतएव जीवनको उपयोगी बनाने के लिए यह मावश्यक है कि मनुष्य समय-समयपर अपनी प्रवृत्तियोका दमन करे और उन्हें अपने नियन्त्रणमें रखे । व्यक्तित्व के विक्रामके लिए मूलप्रवृत्तियोका दमन उतना ही आवश्यक है, जितना उनका प्रकाशन । · मूलप्रवृत्तियोका दमन विचार या विवेक द्वारा होता है । किसी बाह्य मत्ता द्वारा किया गया दमन मानव जीवनके विकासके लिए हानिकारक होता है । अत वचनमे हो णमोकार मन्यके आदर्श द्वारा मानवको मूलप्रवृत्तियांका दमन सरल और स्वाभाविक है । इस मन्या आदर्श हृदयमे श्रा और दृढ विश्वासको उत्पन्न करता है; जिसमे मूलप्रवृत्तियोका दमन
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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