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________________ मंगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन हो जाते हैं, किन्तु जब आत्मा अपने पुरुषार्थसे इन कर्मो को क्षय कर देता है, तव सिद्ध अवस्थाको प्राप्त कर लेता है और उपर्युक्त आठो गुरणोंका मावि - र्भाव हो जाता है । ज्ञानावरगीय कर्मके क्षयसे अनन्तज्ञान, दर्शनावरणीय कर्मके क्षयसे अनन्तदर्शन, वेदनीयके क्षयसे अव्यावाघत्व, मोहनीयके क्षय से सम्यक्त्व, आयुके क्षयसे अवगाहनत्व, नामकर्मके क्षयसे सूक्ष्मत्व, गोत्र- कर्मके क्षयसे अगुरुलघुत्व और अन्तरायके क्षयसे वीर्यगुणका आविर्भाव होता है ।) २. जिन्होने नाना भेदरूप आठ कर्मोका नाश कर दिया है, जो तीन लोकके मस्तकके शेखर-स्वरूप हैं, दु.खोसे रहित हैं, सुखरूपी सागरमे निमग्न हैं, निरजन हैं, नित्य हैं, आठ गुणोसे युक्त हैं, निर्दोष हैं, कृतकृत्य हैं, जिन्होने समस्त पर्यायो - सहित सम्पूर्ण पदार्थोंको जान लिया है, ४४ ८१. कृत्स्नकर्मक्षयाज्ज्ञान क्षायिक दर्शन पुन: । / प्रत्यक्षं सुखमात्मोत्थ वीर्य चेति चतुष्टयम् ॥ 1 सम्यक्त्व चैव सूक्ष्मत्वमव्याबाधगुणः स्वतः । - अस्त्यगुरुलघुत्व च सिद्धे चाष्टगुणाः स्मृताः ॥ - पचाध्यायी, अ० २, श्लो० ६७६८ २. हिय- विविहट्ठ-कम्मा - तिहुवण- सिर सेहरा विहुव- दुक्खा । सुहसार- मज्झगया गिरनया पिच अट्ठगुणा ॥ अणवज्जा कय-कज्जा सन्वावयवेद्दि दिट्ठ-सम्बट्ठा । वज - सिलत्थ भग्गय-पडम वामेब्ज सठाणा ॥ माम संठारणा विहु सव्वावयवेदि यो गुणेहि समा । सन्विदियाण विसयं जमेग - देसे विजायति ॥ 1 धवला टीका, प्रथम पुस्तक, पृ० ४८८ विह कम्मवियला सीदीभूदा गिरजया शिचा । अट्टगुणा किदकिच्चा लोयग्गशिवासियो सिद्धा ॥ - गोम्मटसार जीवकाण्ड, गा० ६६
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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