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________________ मंगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन ४३ १ 'णमो सिद्धाणं - सिद्धा निष्टिताः कृतकृत्याः सिद्धसाध्या. नष्टाष्ट कर्माणः । नमो-नमस्कारः । केभ्यः ? सिद्धेभ्यः, सितं प्रभूतकालेन बद्धं अष्टप्रकार कर्म शुक्लध्यानाग्निना ध्यात- ममीकृत यैस्ते निरुक्तिवशात् सिद्धास्तेभ्यः इति । यद्वा सिद्धगतिनामधेय स्थान प्राप्ता सिद्धाः । यद्वा सिद्धाः सुनिष्ठितार्था मोक्षप्राप्त्या अपुनर्भवत्वेन सम्पूर्णार्थस्तेभ्यः सिद्धेभ्य नमः । अर्थ-जो पूर्णरूपसे अपने स्वरूपमे स्थित हैं, कृतकृत्य हैं, जिन्होने अपने साध्यको सिद्ध कर लिया है और जिनके ज्ञानावरणादि आठ कर्म नष्ट हो चुके हैं, उन्हें सिद्ध कहते हैं । इन सिद्धोको नमस्कार है । जिन्होने सुदूर भूतकाल से बाँधे हुए आठ प्रकारके कर्मों को शुक्लध्यानरूपी अग्नि के द्वारा नष्ट कर दिया है, उन सिद्धोको, अथवा सिद्ध नामकी गति जिन्होने प्राप्त कर ली है और पुनर्जन्म से छूटकर जिन्होंने अपने पूर्ण स्वरूपको प्राप्त कर लिया है, उन सिद्धोको नमस्कार है । तात्पर्य यह है कि जो गृहस्थावस्थाको त्यागकर मुनि हो चारघातिया कर्मोंका नाश कर अनन्तचतुष्टय भावको प्राप्त कर लेते हैं । पश्चात् योग निरोध कर अवशेष चार अघातिया कर्मोंको भी नष्ट कर एव परम ओदारिक शरीरको छोड अपने ऊर्ध्वगमन स्वभावसे लोकके अग्रभावमे जाकर विराजमान हो जाते हैं, वे सिद्ध हैं । समस्त परतन्त्रताओंसे छूट जानेके कारण उनको मुक्त कहा जाता है । आत्मा मे सम्यक्त्व, ज्ञान, दर्शन, वीर्य, सूक्ष्मत्व, अवगाहनत्व, अगुरुदर्शनावरण, लघुत्व और अव्यावाघत्व ये आठ गुण होते हैं । ज्ञानावरण, मोहनीय, वेदनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय ये कर्म इन गुणोके गुण आच्छादित बाधक हैं | आत्मापर इन कर्मोंका आवरण पड जानेसे ये १. धवला टीका, प्रथम पुस्तक, पृ० ४६ । २. सप्तस्मरणानि, पृ० ३ ।
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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