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________________ २२८ भाग वन्धका घट जाना अपकर्षण है । अभिप्राय ११८ णमोकार मन्त्रके रहस्य या मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन भावकी जानकारी । अभिरुचि ११९ अभिरुचि अस्फुट ध्यान है तथा ध्यान अभिरुचिका ही स्फुट रूप है । अभ्यास ११९ मनोविज्ञान बतलाता है कि अभ्यास ( Exercise ) बार-वार किसी कार्यके करनेकी प्रवृत्ति जिसका दूसरा नाम आवृत्ति ( Repetition ) है, ध्यान आदिके लिए उपयोगी है । अभ्यास नियम ८० अभ्यास नियमको आदत निर्माका नियम भी कहा गया है (The law of habit-formation ) I इस नियमके दो प्रमुख अंग हैं - पहलेको उपयोगका नियम ( The law of use) और दूसरेको अनुप - योगका नियम ( The law of disuse ) कहते हैं। ये दोनो एकदूसरेके पूरक है । उपयोगका नियम यह बतलाता है कि यदि एक खास परिस्थितिके प्रति वार-बार एक 71 तरहकी प्रतिक्रिया प्रकट की जा तो उस परिस्थिति और प्रतिक्रिया * के बीच एक सम्बन्ध स्थापित जाता है । अरण्यपीठ एकान्त निर्जन अरण्य में जोकर णमोकार मन्त्र या अन्य किसी 2 मन्त्रकी साधना करना अरण्य पीठ है । भर्थ गुरण पर्याय युक्त पदार्थका नाम अर्थ है । अर्थ पर्याय 35 प्रतिक्षण होनेवाले सूक्ष्म अर्ध पर्यकासन परिणमनको अर्थ पर्याय कहते हैं। .१०५ इस आसन में 'ध्यानके समय अर्ध पद्मासन लगाय जाता है । अवचेतन 2 चेतनोन्मुखं मन है । मनके इस चेतन मनके परे अवचेतन या स्तरमे वे 'भावनाएँ स्मृतियाँ, प्रकाशित नहीं हैं किन्तु जो चेतनाइच्छाएँ तथा वेदनाएँ रहती है जो पर आनेके लिए तत्पर हैं । कोई भी ४१ ارا میرد
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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