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________________ r 1 परिशिष्ट नं० २ अनुचिन्तनगत पारिभाषिक शब्दकोष अगुरुलघुत्व गुण २१७ यह वह गुण है जिसके निमित्त से द्रव्यका द्रव्यत्व बना रहता है । अघातिया कर्म वाले कर्म | अचेतन ३३ आत्म गुणोका घात न करने ८४ अचेतन अनुभूतियां वे हैं जिनकी तात्कालिक चेतना मनुष्यको नही रहती, किन्तु उसके जीवनपर उनका प्रभाव पडता रहता है । भणु पुद्गल के सबसे छोटे टुकड़े या अंशको अणु कहते हैं । १४२ अविशय ४० हैं - अन्तरंग और वहिरंग । अन्तरंग परिग्रह वे अद्भुत या चमत्कारपूर्ण वातें जो सामान्य व्यक्तियोंमे न पायी जायें, अतिशय कहलाती हैं । अधिकरण १२४ वस्तुके आधारका नाम अघि करण है । अधिकरण के दो भेद ४६ आन्तरिक राग, द्वेष, काम, क्रोधादि विकारोमे ममत्व भाव रखना अन्तरंग परिग्रह है । यह चौदह प्रकारका होता है । अन्तरात्मा ३२ शरीर, धन-धान्यादि समस्त परवस्तुओंसे ममत्वबुद्धिरहित होना एवं सच्चिदानन्द स्वरूप आत्माको ही अपना समझना, अन्तरात्मा है । अन्तराय कर्म ३९ सुख ज्ञान एव ऐश्वयं प्राप्तिके साधनोंमे विघ्न उत्पन्न करनेवाला कर्म अन्तराय कर्म कहलाता है । अनानुपूर्वी ૧૪૮ पद व्यतिक्रम से णमोकार मन्त्र का पाठ करना या जाप करना अनानुपूर्वी है । अपकर्षण 1 १३० कर्मोंके स्थितिबन्ध एवं अनु
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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