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________________ मगलमन्त्र णमोकार · एक अनुचिन्तन २२१ जाप अमोघ अस्त्र है । पर इतनी वात सदा ध्यान रखने की है कि मन्य जाप करते हुए तल्लीनता आ जाये। जिसने साधनाकी प्रारम्भिक सीढीपर पैर रखा है. मन्त्र जाप करते समय उसके मनमे दूसरे विकल्प आयेंगे, पर उनकी परवाह नही करनी चाहिए। जिस प्रकार आरम्भमे अग्नि जलानेपर नियमत. बुआं निकलता है, पर अग्नि जब कुछ देर जलती रहती है, तो धुआंका निकलना वन्द हो जाता है। इसी प्रकार प्रारम्भिक साधनाके समक्ष नाना प्रकारके सकल्प-विकल्प आते हैं, पर साधनापथमे कुछ आगे बढ जानेपर विकल्स रुक जाते हैं। अत. हनु श्रद्धापूर्वक इस मन्त्रका जाप करना चाहिए। मुझे इसमे रत्ती-भर भी शक नहीं है कि यह मंगलमन्त्र हमारी जीवन-डोरहोगा औरसकटोसे हमारी रक्षा करेगा। इस मन्त्रका चमत्कार है हमारे विचारोके परिमार्जनमे । यह अनुभव प्रत्येक साधकको थोड़े ही दिनोंमे होने लगता है कि पचमहाव्रत, मैत्री,प्रमोद, कारुण्य और माध्यस्थ इन भावनाओंके साथ दान, शील, तप और ध्यानकी प्राप्ति इस मन्त्रकी दृढ श्रद्धा-द्वारा ही सम्भव है। जैन वननेवाला पहला साधक तो इस णमोकार मन्त्रका श्रद्धामहित उच्चारण करता है । वासनाओका जाल, क्रोध-लोभादि कषायोकी कठोरता आदिको इसी मन्त्रकी साधनासे नष्ट किया जा सकता है। अतएव प्रत्येक व्यक्तिको सोते-जागते, उठते-बैठते सभी अवस्यामोमे इस मन्त्रका स्मरण रखना चाहिए । अभ्यास हो जानेपर अन्य क्रियाओमे संलग्न रहनेपर भी णमोकार मन्त्रका प्रवाह अन्तश्चेतनामें निरन्तर चलता रहता है । जिस प्रकार हृदयकी गति निरन्तर होती रहती है, उसी प्रकार भीतर प्रविष्ट हो जानेपर इस मन्त्रकी साधना सतत चल सकती है । इस मगलमन्त्रकी आराधनामे इस बातका ध्यान रखना होगा कि इसे एकमात्र तोतेकी तरह न रटें । बल्कि अवाछनीय विकारोको मनसे निकालनेकी भावना रखकर और मन्त्रकी ऐसा करनेकी शक्तिपर विश्वास रखकर ही इसका जाप करें। जो साधक अपने परिणामोको जितना अधिक
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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