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________________ मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन १९५ नन्दवती कन्या हुई और पश्चात् सीताके समान सती-साध्वी नारी हुई। महामन्त्रका प्रभाव अद्भुत है। कहा गया है - हथिनी की काया से कैसे हुई सती सीता नारी । जिसने नारी युग में पायी पातिव्रत पदवी भारी ।। नमस्कार ही महामन्त्र है भव सागर की नैया । सदा मजोगे पार करेगा बन पतवार खिवैया ।। पार्श्वपुराणमे वताया गया है कि भगवान् पार्श्वनाथने अपनी छमस्थ अवस्थामे जलते हुए नाग-नागिनीको णमोकार महामन्त्रका उपदेश दिया, जिसके प्रभावसे वे धरणेन्द्र और पद्मावती हुए। इसी प्रकार जीवन्धर स्वामीने कुत्तेको णमोकार महामन्य सुनाया था, जिसके प्रभावसे कुत्ता स्वर्गमे देव हुआ। आराधना-कथाकोशमे इस महामन्यके माहात्म्यकी कथाका वर्णन करते हुए कहा है कि चम्पानगरीके सेठ वृषभदत्तके यहां एक ग्वाला नोकर था। एक दिन वह वनसे अपने घर आ रहा था। शीतकालका समय था, कडाकेकी सर्दी पड़ रही थी। उसे रास्तेमे ऋद्धिधारी मुनिके दर्शन हुए, जो एक शिलातलपर बैठकर ध्यान कर रहे थे । ग्वालेको मुनिराजके ऊपर दया आयी और घर जाकर अपनी पत्नीसहित लौट आया तथा मुनिराजकी वैयावृत्ति करने लगा। प्रात काल होनेपर मुनिराजका ध्यान भंग हुआ और ग्वालेको निकट भव्य समझकर उसे णमोकार मन्त्रका उपदेश दिया। अब तो उस ग्वालेका यह नियम बन गया कि वह प्रत्येक कार्यके प्रारम्भ करनेपर णमोकर मन्त्रका नौ बार उच्चारण करता । एक दिन वह भैस चरानेके लिए गया था। भैसें नदीमे कूदकर उस पार जाने लगी, अत ग्वाला उन्हें लौटानेके लिए अपने नियमानुसार णमोकार मन्त्र पढकर नदीमे कूद पडा। पेटमें एक नुकीली लकडी चुभ जानेसे उसका प्राणान्त हो गया और णमोकार मन्त्रके प्रभाव से उसी सेठके यहाँ सुदर्शन नामका पुत्र हुआ। सुदर्शनने उसी भवसे निर्वाण प्राप्त किया । अत कथाके अन्तमे कहा गया है -
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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