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________________ १९२ मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन नामकी एक प्रसिद्ध नगरी है। इस नगरी मे पद्मरुचि नामका सेठ रहता था, जो अत्यन्त घर्मात्मा, श्रद्धालु और सम्यग्दृष्टि या । एक दिन यह गुरुका उपदेश सुनकर घर जा रहा था कि रास्तेमे एक घायल वैलको पीडासे छटपटाते हुए देखा । सेठने दया कर उसके कानमें णमोकार मन्त्र सुनाया, जिसके प्रभावसे मरकर वह वेल इसी नगर के राजाका वृषभध्वज नामका पुत्र हुआ । समय पाकर जब वह बडा हुआ तो एक दिन हाथीपर सवार होकर वह नगर - परिभ्रमणको चला । मार्गमे जब राजाका हाथी उस वैलके मरनेके स्थानपर पहुंचा तो उस राजाको अपने पूर्वभवका स्मरण हो आया तथा अपने उपकारीका पता लगानेके लिए उसने एक विशाल जिनालय बनवाया, जिसमे एक वैलके कानमे एक व्यक्ति णमोकार मन्त्र सुनाते हुए अकित किया गया । उस बैलके पास एक पहरेदारको नियुक्त कर दिया तथा उस पहरेदारको समझा दिया कि जो कोई इस बैल के पास आकर आश्चर्य प्रकट करे, उसे दरबारमे ले आना । एक दिन उस नवीन जिनालय के दर्शन करने सेठ पद्मरुचि आया और पत्थरके उस बैलके पास णमोकार मन्त्र सुनाती हुई प्रस्तर मूर्ति अकित देखकर आश्र्चर्यान्वित हुआ । वह सोचने लगा कि यह मेरी आजसे २५ वर्ष पहलेको घटना यहाँ कैसे अकित की गयी है । इसमे रहस्य है, इस प्रकार विचार करता हुआ आश्चर्य प्रकट करने लगा । पहरेदारने जव सेठको आश्चर्य में पडा देखा तो वह उसे पकडकर राजाके पास ले गया | राजा - सेठजी ! आपने उस प्रस्तर मूर्तिको देखकर आश्चर्य क्यो प्रकट किया ? सेठ - राजन् । आजसे पचीस वर्ष पहलेकी घटनाका मुझे स्मरण आया । मैं जिनालय से गुरुका उपदेश सुनकर अपने घर लौट रहा था कि रास्ते मे मुझे एक बैल मिला। मैंने उसे णमोकार मन्त्र सुनाया । यही घटना उस प्रस्तर मूर्ति में अकित है । अत उसे देखकर मुझे आश्चर्यान्वित होना स्वाभाविक है ।
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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