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________________ मंगलमन्त्र णमोकार - एक अनुचिन्तन १९१ स्मरण करते हुए प्राणोका त्याग किया, जिससे पन्द्रहवें म्वर्गमे कीर्तिधर नामक महद्धिकदेव हुमा । णमोकारमन्त्रका ऐसा ही प्रभाव है, जिससे इस मन्त्रके ध्यानसे सासारिक कष्ट दूर होते हैं, साथ ही परलोकमे महान् सुख प्राप्त होता है। धर्मामृतकी सभी कथाओमे णमोकारमन्त्रकी महत्ता प्रदर्शित की गयी है । यद्यपि ये कथाएँ सम्यक्त्वके आठ अग तथा पचाणुव्रतोंकी महत्ता दिखलानेके लिए लिखी गयी हैं, पर इस मन्त्र का प्रभाव सभी पात्रोपर है। पुण्यास्रव कथाकोपमे इस महामन्त्रके महत्त्वको प्रकट करनेवाली आठ कथाएं आयी हैं। प्रथम कथाका वर्णन करते हुए बताया गया है कि इस महामन्त्र की आराधना करके तियंच भी मानव पर्यायको प्राप्त होते हैं । कहा है प्रथम मन्त्र नवकार सुन तिरी बैलको जीव । ता प्रतीत हिरदै धरी मयो रास सुग्रीव ।। ताके बरनन करत हूँ जानो मन वच काय । महामन्त्र हिरदै धरै सकल पाप मिट जाय ।। णमोकारका महापुण्य है अकथनीय उसकी महिमा । जिसके फलसे नीच वैलने पाई सद्गति गरिमा ।। देखो! पदमरुचिर जिस फलसे हुए रामसे नृपति महान् । करो ध्यान युत उसकी पूजा यही जगतमें सच्चा मान ।। अयोध्यामे जब महाराज रामचन्द्रजी राज्य करते थे, उस समय सकलभूपण केवलज्ञानके धारी मुनिराज इस नगरके एक उद्यानमे पधारे । पूजा-स्तुति करनेके उपरान्त विभीषणने मुनिराजसे पूछा कि "प्रभो । कृपा कर यह बतलाइए कि किस पुण्यके प्रभावसे सुग्रीव इतना गुणी और प्रभावशाली राजा हुआ है। महाराज रामचन्द्रजीकी तथा सुग्रीवकी पूर्व भवावलि जाननेकी बडी भारी इच्छा है। केवली भगवान् कहने लगे-इस भरत क्षेत्रके आर्यखण्डमे श्रेष्ठपुरी
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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