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________________ १८२ मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन प्रकार कहकर अंजनचोर सोचने लगा कि मुझे तो मरना ही है जैसे भो म । अतः जिनदत्त श्रेष्ठिके द्वारा प्रतिपादित इस मन्त्र और विधिपर विश्वास कर मरना ज्यादा अच्छा है, इससे स्वर्ग मिलेगा । जरा भी देर होती है तो पहरेदारोंके साथ कोतवाल मायेगा और पकड़कर फांसी पर चढ़ा देगा | इस प्रकार विचार कर उसने वारिपेणसे कहा - "भाई ! तुम्हे विश्वास नहीं है, तो मुझे इस मन्त्रकी साधना करने दीजिए।" वारिषेण प्राणो मोहमे पडकर घबडा गया और उसने मन्त्र तथा उसकी विषि अजन चोरको बतला दी । उसने दृढ श्रद्धानके साथ मन्त्र की साधना की तथा १०८ रस्सियोको काट दिया। अब वह नीचे गिरनेको हो था, कि इसी वीच आकाशगामिनी विद्या प्रकट हुई और उसने गिरते हुए अजनचोरको ऊपर हो उठा लिया । विद्या प्राप्तिके अनन्तर वह अपने उपकारी जिनदत्त सेठके दर्शन करनेके लिए सुमेरु पर्वतपर स्थित नन्दन और भद्रशालके चैत्यालयो मे गया । यहाँपर वह भगवान्‌को पूजा कर रहा था । इस प्रकार अंजन चोरको आकाशगामिनी विद्याकी प्राप्ति के अनन्तर संसारसे विरक्ति हो गयो, अत उसने देवर्षि नामक चारण ऋद्धिधारी मुनिके पास दीक्षा ग्रहण की और दुर्घर तप कर कर्मोंका नाश कर कैलाश पर्वतपर मोक्ष प्राप्त किया । णमोकार महामन्त्र मे इतनी बड़ी शक्ति है कि इसकी साधनासे अजनचोर-जैसे व्यसनी व्यक्ति भी तद्भवमे निर्वाण प्राप्त कर सकते है । इसी कथामे यह भी वतलाया गया है कि धन्वन्तरि और विश्वानुलोम-जैसे दुराचारी व्यक्ति णमोकार मन्त्रको दृढ साधना द्वारा कल्याणको प्राप्त हुए हैं । धर्मामृत की तीसरी कथामे अनन्तमतीके व्रतोकी दृढताका वर्णन करते हुए बताया गया है कि अनन्तमतीने अपने संकट दूर करनेके लिए कई बार इस महामन्त्रका ध्यान किया । इस मन्त्र के स्मरण से उसका बडासे बड़ा कष्ट दूर हुआ है । जब वेश्याके यहाँ अनन्तमतीके ऊपर उपसगं आया था, उस समय उसके दूर होने तक उसने समाधिमरण ग्रहण कर लिया और
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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