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________________ मगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन १७१ द्वादशागका सार है, अथवा द्वादशाग रूप ही है । संसारकी समस्त वाधाओको दूर करनेवाला है । शास्त्र प्रवचन आरम्भ करनेके पूर्व जो मंगलाचरण पढा जाता है, उसमें णमोकार मन्त्र व्याप्त है। कर्तव्यमार्गका परिज्ञान करानेके लिए इसके सामने कोई भी अन्य साधन नही हो सकता है । जीवनके अज्ञानभाव और अनात्मिक विश्वास इस मन्त्रके स्वाध्यायद्वारा दूर हो जाते हैं। लोकेषणा, पुत्रषणा और वित्तपणाएं इस महामन्त्रके प्रभावसे नष्ट हो जाती हैं। तथा आत्माके विकार नष्ट होकर आत्मा शुद्ध निकल आता है। स्वाध्यायके साथ तो इस महामन्त्रका सम्बन्ध वर्णनातीत है । अतः गुरुभक्ति और स्वाध्याय इन दोनों आवश्यक कर्तव्योके साथ इस महामन्त्रका अपूर्व सम्बन्ध है । श्रावककी ये क्रियाएं इन मन्त्रके सहयोगके विना सम्भव ही नहीं हैं। ज्ञान, विवेक और आत्मजागरणकी उपलब्धिके लिए णमोकार मन्त्रके भावध्यानकी आवश्यकता है। इच्छामो, वासनामो और कषायोपर नियन्त्रण करना संयम है। शक्तिके अनुसार सर्वदा संयमका धारण करना प्रत्येक श्रावकके लिए आवश्यक है । पचेन्द्रियोका जप, मन-वचन-कायकी अशुभ प्रवृत्तिकात्याग तथा प्राणीमायकी रक्षा करना प्रत्येक व्यक्तिके लिए आवश्यक है। यह संयम ही कल्याणका मार्ग है। सयमके दो भेद हैं -प्राणीसंयम और शक्तिसंयम । अन्य प्राणियोंको किंचित् भी दुख नहीं देना, समस्त प्राणियोके माथ भ्रातृत्व भावनाका निर्वाह करना और अपने समान सभीको सुख-आनन्द भोगनेका अधिकारी समझना प्राणीसयम है । इन्द्रियोको जीतना तथा उनकी उद्दाम प्रवृत्तिको रोकना इन्द्रिय-सयम है । णमोकार मन्त्रकी आराधनाके विना श्रावक संयमका पालन नहीं कर सकता है, क्योकि इसी मन्यका पवित्र स्मरण संयमकी ओर जीवको झुकाता है । इच्छामोका निरोध करना तप है, णमोकार महामन्त्र का मनन, ध्यान और उच्चारण इच्छाओको रोकता है। व्यर्थकी अनावश्यक इच्छाएं, जो व्यक्तिको दिन-रात परेशान करती रहती हैं, इस महामन्यके कारण
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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