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________________ मगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन १६९ उपाध्याय और साधुको मै मोक्ष-प्राप्तिके लिए तीनो सन्ध्याओमे नमस्कार करता हूँ। अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु ये पचपरमेष्ठी हमारा मंगल करें, निर्वाण पदकी प्राप्ति हो । पचपरमेष्ठियोंके वे चरणकमल रक्षा करें, जो इन्द्रके नमस्कार करनेके कारण मुकुट मणियोसे निरन्तर उद्भासित होते रहते हैं । पचपरमेष्ठीको नमस्कार करनेसे भवभवमे सुखकी प्राप्ति होती है। जन्म-जन्मान्तरका सचित पाप नष्ट हो जाता है और आत्मा निर्मल निकल आता है। अतः मुनिराज अपनी प्रत्येक क्रियाके आरम्भ और अन्तमे इस महामन्त्रका स्मरण करते है। प्रवचनसारमे कुन्दकुन्द स्वामीने बताया है कि जो अरिहन्तके आत्माको ठीक तरहसे समझ लेता है. वह निज आत्माको भी द्रव्य-गुण पर्यायसे युक्त अवगत कर सकता है । णमोकार मन्यकी आराधना स्थिर सचित पापको भस्म करनेवाली है। इस मन्त्रके ध्यानसे अरिहन्त और सिद्धकी आत्माका ध्यान किया जाता है, आत्मा कर्मकलकसे रहित निज स्वरूपको अवगत करने लगता है । कहा गया है जो जाणदि अरिहत दव्यत्त गुणत्त पजयत्तेहिं । सो जाणदि अप्पाणं मोहो खलु जादि तस्स लयं ।।८।। -अ०१ "यो हि नामान्तं द्रव्यत्वगुणत्वपर्यायवै. परिच्छिनत्ति स खल्वास्मानं परिच्छिनत्ति, उभयोरादिनिश्चयेनाविशेषात् । अहंतोऽपि पाककाष्टागतकार्तस्वरस्येव परिस्पष्टमात्मरूप ततस्तत्परिच्छेदै सर्वारमपरिच्छेद. । तत्रान्वयो द्रव्य, अन्वयं विशेषणं गुण., अन्वयव्यतिरेकाः पर्यायाः।' अर्थात् जो अरिहन्तको द्रव्य, गुण और पर्याय रूपसे जानता है, वह अपने आत्माको जानता है, और उसका मोह नष्ट हो जाता है। क्योकि जो अरिहन्तका स्वरूप है, वही स्वभाव दृष्टिसे आत्माका भी यथार्थ स्वरूप है । अतएव मुनिराज सर्वदा इस महामन्यके स्मरण-द्वाग अपने मात्मामे पवित्रता लाते हैं ।
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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