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________________ " होगा। तीयपद, चतुर जमो भरिह मंगलमन्त्र णमोकार . एक अनुचिन्तन १५५ सव्वसाहूण" होगा। इसी प्रकार चौथी पक्तिमे प्रथम स्थानमे तृतीयपद, द्वितीयमे प्रथमपद, तृतीयमे द्वितीयपद, चतुर्थ स्थानमे चतुर्थपद और पचम स्थानमे पचमपद होनेसे - "णमो आइरियाणं णमो अरिहंताणं णमो सिन्हाण णमो उवज्झायाण णमो लोए सव्वसाहणं' यह मन्त्रका रूप होगा । प्रथम वर्गकी पांचवी पक्तिके प्रथम स्थानमे द्वितीय पद, द्वितीय स्थानमे तृतीय पद, चतुर्थ स्थानमे चतुर्थपद और पचम स्थानमे पचमपद होनेसे "णमो सिद्धाणं णमो आइरियाण णमो अरिहताणं णमो उवज्झायाण णमो लोए सव्वसाहूण" यह मन्त्रका रूप हुआ। छठवीं पक्तिमे प्रथम स्थानमे तृतीयपद, द्वितीय स्थानमे द्वितीयपद, तृतीय स्थानमे प्रथमपद, चतुर्थ स्थानमे चतुर्यपद और पचम स्थानमे पचम पदके होनेसे "णमो आइरियाणं, णमो सिद्धाण, णमो अरिहताण, णमो उवज्झायाणं, णमो कोए सव्वलाहूणं" मन्त्रका रूप होगा। इसी प्रकार द्वितीय वर्गकी प्रयम पक्तिमें "णमो अरिहंताण णमो सिद्धाण णमो आइरियाणं णमो लोए सब्बसाहूणं णमो उवज्झायाण" यह मन्त्रका रूप होगा। द्वितीय पक्तिमें "णमो सिद्धाणं णमो अरिहंताण णमो आइरियाण णमो लोए सवसाहूणं णमो उवज्झायाण" यह मन्त्र, तृतीय पक्तिमें "णमो अरिहवाणं णमो आइरियाण णमो सिन्द्वाणं णमो लोए सम्बसाहुण णमो उवज्झायाण" यह मन्त्र, चतुर्थ पक्तिमे णमो भाइरियाणं णमो अरिहंताण णमो सिद्धाणं णमो लोए सब्बसाहूणं णमो उवज्झायाणं' यह मन्त्र, पचम पक्तिमे "णमो सिद्धाणं णमो भाइरियाण णमो अरिहताण णमो लोए सब्बसाहूण णमो उवज्झायाण" यह मन्त्र और पष्ठ पक्तिमे "णमो भाइरियाणं णमो सिद्धाण णमो अरिहताणं णमो लोए सवसाहूण णमो उबज्मायाणं" यह मन्त्रका रूप होगा। तृतीय वर्गकी प्रथम पक्तिमें "णमो मरिहंताणं णमो सिद्धाण णमो उवज्झायाण णमो लोए सव्वसाहूणं णमो भाइरियाण" द्वितीय पक्तिमे "णमोमिद्धाणं णमो मरिहताणं णमो उवज्झायाण णमो लोए सव्यसाहणं
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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