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________________ १५४ मगलमन्त्र णमोकार . एक अनुचिन्तन अष्टम वर्ग नवम वर्ग दशम वर्ग 1 २ इस प्रकार क्रम-व्यतिक्रम-स्थापन द्वारा एक सौ बीस पक्तियां भी बनायी जाती हैं । इसका अभिप्राय यह है कि प्रथम वर्गकी प्रथम पक्तिमें णमोकार मन्त्र ज्योका त्यो है, द्वितीय पक्तिमे प्रथम दो अकसल्या रहनेसे इस मन्त्रका प्रथम द्वितीय पद, अनन्तर एक सख्या होनेसे प्रथम पद, पश्चात् तीन सख्या होनेसे तृतीयपद, अनन्तर चार अक सख्या होनेसे चतुर्थपद और अन्तमे पांच अक सस्या होनेसे पचम पदका इस मन्त्रमें उच्चारण किया जायेगा अर्थात् प्रथम वर्गको द्वितीय पक्तिका मन्त्र इस प्रकार रहेगा-"णमो सिद्धाणं, णमो अरिहवाणं, णमो आइरियाण, णमो उवज्झायाण, णमो लोए सब्बसाहूण।" प्रथम वर्गकी तृतीय पक्तिमे पहला एकका अक है, अतः इस मन्त्रका प्रथम पद, दूसरा तीनका अक है, अत इस मन्त्रका तृतीयपद, तीसरा दोका अक है, अत इस मन्त्रका द्वितीय पद, चौथा चारका अक है, मत मन्त्रका चतुर्थपद एव पांचवां पाँचका अक है, अत. इस मन्यका पचम पदका उच्चारण किया जायेगा। अर्थात् मन्त्रका रूप ",मो अरिहताण णमो आइरियाणं णमो सिद्धाण णमो उवज्झायाण णमो कोए
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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