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________________ मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्ता १४५ मनोवर्गणा और काणिवर्गणा ये पांच ग्राह्य वर्गणाएं होती है, अतः भाषावर्गणाका व्यक्तरूप है । अत. णमोकार मन्त्रके शब्द भाषावर्गणन अंग है। ये वर्गणाएँ द्रव्य दृष्टिसे नित्य और पर्याय दृष्टिसे अनित्य होती हैं । अतः णमोकार मन्त्रके शब्द पुद्गल द्रव्य हैं। धर्म और अधर्म- ये दोनो द्रव्य क्रमश जीव और पुद्गलोंको चलने और ठहरनेमें सहायता करते हैं । णमोकार महामन्त्रका अनादि परम्पराः से जो परिवर्तन होता आ रहा है तथा अनेक कल्पकालके अनेक तीर्थकरोंने इस महामन्त्रका प्रवचन किया है इसमे कारण ये दोनो द्रव्य है। इन द्रव्योंके कारण ही शब्द और अर्थ रूप परिणमन करनेमे रवय परिवर्तन करते हुए इस मन्त्रको ये दोनो द्रव्य सहायता प्रदान करते है। आकाश - समस्त वस्तुओको अवकाश - स्थान प्रदान करता है। णमोकार मन्त्र भी द्रव्य है, उसे भी इसके द्वारा अवकाश - स्थान मिलता है। यह मन्त्र शब्दरूपमे लिखित किसी कागजपर उसमे निवास करनेवाले आकाशद्रव्यके कारण ही स्थित है। क्योकि आकाशका अस्तित्व पुस्तक, ताम्रपत्र, ताडपत्र, भोजपत्र, कागज आदि समीमे है । मत यह मन्त्र भी लिखित या अलिखित रूपमे आकाश द्रव्यमे ही वर्तमान है। काल - इस द्रव्यके निमित्तसे वस्तुओकी अवस्थाएं बदलती हैं। पर्यायोका होना तथा उत्पाद-व्ययरूप परिणतिका होना कालद्रव्यपर निर्भर है। कालद्रव्यकी सहायताके विना इस मन्त्रका आविर्भाव और तिरोभाव सम्भव नहीं है। णमोकार महामन्त्र द्रव्य है, इसमे गुण और पर्यायें पायी जाती हैं। इस मन्यमे द्रव्य, द्रव्याश, गुण, गुणाश रूप स्वचतृष्टय वर्तमान है जिसे दूसरे शब्दोमे द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव कहा जाता है। इसका अपना चतुष्टय होनेने ही यह द्रव्यापेक्षया अनादि माना जाता है । द्रव्यानुयोगकी अपेक्षासे भी यह मन्त्र आत्मकल्याणमे सहायक है, क्योकि इसके द्वारा
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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