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________________ मंगलमन्त्र णमोकार · एक अनुचिन्तन १४१ ६४+ ३५ = ९९, ९+ ९ = १८,८+ १ = ९ नारायण, ९ प्रतिनारायण, ९ बलदेव, इस प्रकार कुल २४+१२+९+९+९= ६३ शलाका पुरुष । ५८ मात्राएं, इनके विश्लेपण-द्वारा ५+८= १३ चारित्र, ५४८ = ४०, ४+ ० = ४ प्रकारके बन्ध - प्रकृति, प्रदेश, स्थिति और अनुभाग । प्रमाणके भेद-प्रभेद भी इसमे निहित हैं। प्रमाणके मूलभेद दो हैं - प्रत्यक्ष और परोक्ष। ५-३ = १ ल० शेष २, यही दो भेद वस्तुके व्यवस्थापक प्रमाणके भेद हैं। परोक्षमे पांच भेद - स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान और आगमरूप पांच पद हैं । नयके द्रव्याथिक और पर्यायायिक भेदोंके साथ नैगम, सग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ और एवभूत । ये सात भी ३+४ = ७ रूपमें विद्यमान हैं। इस प्रकार इस महामन्त्रमे कर्मवन्धक सामग्री - मिथ्यात्व ५, अविरति १२, प्रमाद १५, कपाय २५ और योग १५ की सख्या भी विद्यमान है। साथ ही कर्मबन्धनसे मुक्त करानेवाली सामग्री ५ समिति, ३ गुप्ति, ५ महाव्रत, २२ परीषहर जय, १२ अनुप्रेक्षा और १० धर्मकी सख्या भी निहित है। १० धर्मकी सख्या तथा कर्मोके १० करणोकी सख्या निम्न प्रकार आती है। ३५ अक्षरोका विश्लेषण सामान्य पदोके साथ किया तो ३४५% १५ - ५ पद - १० । इस मन्त्रके अकोमे द्वादशागके पृथक् पृथक् पदोंकी संख्या भी निहित है, आचाराग, सूत्रकृताग, स्थानाग, समवायाग, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञातृधर्मकथाग, उपासकाध्ययनाग मादि अगोकी पदसख्या क्रमश अठारह हजार, छत्तीस हजार, व्यालीस हजार, एक लाख चौसठ हजार, दो लाख अट्ठाईस हजार, पांच लाख छप्पन हजार, ग्यारह लाख सत्तर हजार, तेईस लाख अट्ठाईस हजार, वानवे लास चवालीस हजार, तिरानवे लाख सोलह हजार और एक करोड चौरासी लाख पद हैं। इन सब सख्याओकी उत्पत्ति इस महामन्त्रसे हुई है । दृष्टिवादके पदोकी सख्या भी इस मन्त्रमे विद्यमान है। जिसमे जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल इन छह द्रव्योका; जीव, अजीव, आस्रव, वन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष इन सात तत्त्वोंका
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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