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________________ १४० मंगलमन्त्र णमोकार · एक अनुचिन्तन सामान्यपदका गुणन % ५८ + ३४ + ३० + ११+ १५ = १४८ । इन १४८ प्रकृतियोमे १२२ प्रकृतियाँ उदय योग्य हैं और वन्ध योग्य १२० प्रकृतियाँ हैं । उनका क्रम इस प्रकार है - ५८+ ६४ % १२२ ये ही उदय योग्य हैं । क्योकि १४८ मे-से २६ निम्न प्रकृतियां कम हो जाती हैं। स्पर्शादि २० की जगह ४ का ग्रहण किया जाता है, इस प्रकार १६ प्रकृतियां घट जाती है और पांचो शरीरोके पांच वन्धन और पाँच सघातोका ग्रहण नही किया गया है । इस प्रकार २६ घटनेसे १२२ उदयमे तथा वन्धमे दर्शनमोहनीयकी एक ही प्रकृति बंधती है और उदयमे यही तीन रूपमे परिवर्तित हो जाती है । कहा गया है - जंतेण कोदव वा पढमुवसम्ममावजंतेण । । मिच्छं दन्वं तु तिधा असखगुणहीणदच्चकमा ।-कमकाण्ड __ अर्थात् - प्रथमोपशमसम्यक्त्वपरिणामरूप यन्त्रसे मिथ्यात्वरूपी कर्मद्रव्य द्रव्यप्रमाणमे क्रमसे असख्यातगुणा-असख्यातगुणा कम होकर तीन प्रकारका हो जाता है। अर्थात् बन्ध केवल मिथ्यात्व प्रकृतिका होता है और उदयमे वही मिथ्यात्व तीन रूपमे बदल जाता है। जैसे धानके चावल, कंण और भूसा ये तीन अश हो जाते हैं अर्थात् केवल धान उत्पन्न होता है, पर उपयोगकालमे उसी धानके चावल, कण और भूसा ये तीन अश हो जाते है । यही वात मिथ्यात्वके सम्बन्धमे भी है। इस प्रकार णमोकारमन्त्र वन्ध, उदय और सत्त्वकी प्रकृतियोकी सख्यापर समुचित प्रकाश डालता है। कुल प्रकृति संख्या १४८, बन्धसख्या १२०, उदय संख्या १२२ और सत्त्वसख्या १४८ इसी मन्त्रमे निहित है । १२० सख्या निकालनेका क्रम यह है- ३४ स्वर, ३० व्यजन बताये गये हैं । ३४४ - १२, ३४० = ० गुणनशक्तिके अनुसार शून्यको दस मान लेनेपर गुणनफल = १२० । ३०, ३ + 0 = ३ रत्नत्रय सख्या; ३x० = कर्माभावरूप-मोक्ष। ३० + ३४ = ६४, ६x४ = २४ तीर्थकर, ३४४ = १२ चक्रवर्ती,
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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