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________________ ११८ मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन है, इस दृष्टिसे योगका तादात्म्यभाव सम्बन्ध भी सिद्ध होता है । तथा भेदविवक्षासे णमोकार मन्त्रकी साधना के लिए योगका विधान किया है । अर्थात् योग-क्रियाद्वारा णमोकार मन्त्रको साधना की जाती है, अतः इस अपेक्षासे योगको साधन और णमोकार मन्त्रको साध्य कहा जा सकता है । यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्यय इन पचागो-द्वारा णमोकार मन्त्रको साधने योग्य शरीर और मनको एकान किया जाता है। ध्यान और धारणा क्रिया-द्वारा मन, वचन और कायकी चंचलता बिलकुल रुक जाती है तथा साधक णमोकार मन्त्र रूप होकर सविकल्प समाधिको पार करनेके उपरान्त निर्विकल्प समाधिको प्राप्त होता है। जिस प्रकार रातमें समस्त बाहरी कोलाहलके रुक जाने पर रेडियोकी आवाज साफ सुनाई पड़ती है तथा दिनमें शव्द-लहरोपर बाहरी वातावरणका घात-प्रतिघात होता रहता है, अत. आवाज साफ सुनाई नहीं पड़ती है। पर रातमें शब्द लहरोपर-से आघात छूट जानेपर स्पष्ट आवाज़ सुनाई पड़ने लगती है । इसी प्रकार जबतक हमारे मन, वचन और काय स्थिर नहीं होते हैं, तबतक णमोकार मन्त्रकी साधनामें आत्माको स्थिरता प्राप्त नहीं होती है, किन्तु उक्त तीनो - मन, वचन और कायके स्थिर होते ही साधनामें निश्चलता आ जाती है । इसी कारण कहा गया है कि साधकको ध्यान-सिद्धिके लिए चित्तकी स्थिरता रखनी परम आवश्यक है। मनको चचलतामें ध्यान बनता नहीं । अतः मनोनुकूल स्त्री, वस्त्र, भोजनादि इष्ट पदार्थोंमें मोह न करो, राग न करो और मनके प्रतिकूल पडनेवाले सर्प, विष, कण्टक, शत्रु, व्याधि आदि अनिष्ट पदार्योंमें उप मत करो, क्योंकि इन इष्ट-अनिष्ट पदार्थोंम राग द्वेप करनेसे मन चचल होता है और मनके चचल रहनेसे निर्विकल्प समाधिरूप ध्यानका होना सम्भव नही। आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्तीने इसी वातको स्पष्ट किया है मा मुज्झइ मा रजाइ मा दूसइ इट्टणिद्वेसु । थिरमिच्छइ जइ चित्तं विचित्तज्झाणप्पसिद्धीए॥
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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