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________________ १४४ महावीर युग को प्रतिनिधि कथाएं आया। उसने उसके भाई की हत्या तो की ही थी, बारह-बारह वर्ष तक भटकाया भी था । अब तो गिन-गिन कर वदला न लिया तो क्या किया? यह सोचकर क्षत्रिय ने हत्यारे की गर्दन पकड ली-"चल, नीच | चल, हत्यारे । अव तो तुझे अपनी माता के सामने ही यमलोक भेजूंगा ताकि उसका कलेजा भी ठण्डा हो।' माता के सामने उस हत्यारे को पटक कर क्षत्रिय ने कहा "ले, माँ । तेरे पुत्र के हत्यारे को पकड लाया हूँ। इस दुष्ट का शीप तू अपने ही हाथो से भुट्ट की तरह उडा दे।" पुत्र ने तलवार अपनी माता की ओर बढाई । किन्तु माता ने तलवार पकडने के लिए हाथ नही उठाया । वह एकटक उस रोते-गिडगिटाते हत्यारे को देख रही थी और सुन रही थी "क्षत्रियाणी माँ ! तुम तो वीरमाता हो । मैं नीच हत्यारा हूँ । मुझे क्षमा कर दो। मेरे प्राण बचा दो। मै भीख माँगता हूँ | मेरे बिना मेरी बूढी मॉ विलख-विलख कर मर जायगी। मेरे छोटे-छोटे बच्चे भूख से तडपतडप कर मर जायँगे । क्षत्रियाणी माँ | तुम्हारे हृदय मे तो एक माता का ।" क्षत्रिय-पुत्र ने क्रोध मे आकर एक ठोकर उस हत्यारे को मारी ओर कहा-"अव तुझे अपनी माँ और बच्चो की याद आई हे ? हत्यारे उस समय क्या हुआ था जब तूने मेरे भाई की हत्या की थी ? क्या उसके कोई माता नही थी ? कोई भाई नही था ? कोई बच्चे नही थे ?” ठोकर खाकर हत्यारे का सिर भन्ना गया था। कुछ क्षण सास लेकर वह फिर गिडगिडाया___“ठोकरें मारलो। और ठोकरे मारलो । जीवन भर ठोकरे मारते रहो मालिक | मुझे अपना दास बनाकर रखो और ठोकरें मारते रहो। केवल मेरी जान न लो । मेरे बच्चों को अनाय मत करो ।" “वस वस, बेटा । रहने दे। गेड दे। जाने दे इसे अपने बच्चो के पाम.... ...." "क्या कहती हो माँ ।”-क्षत्रिय ने अपनी माता की बात सुनकर क्हा- "इसे जाने दूं? इसे जीवित हो जाने दूँ ? तुम होश मे तो हो'
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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