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________________ तिमोहिमुख करते हैं। प्रभु मोहि लावैौ प्रायदिंग हमहूपायनपरत है ॥२॥ प्रथमानवो त्रयमाणकथनाक वित्त मानुषेोचयखत चौडाईभूपर एक सहसवाईस | मध्य सात से तेईस योजनउपरचारसत्तक चोवीस || सत्तरहसेइकाई सञ्चाईजडचा रिसेपावच्चर सरजु विमाशाक हिभांति मिल्यो है जोजन लाषक है। जगदीस |२२|| प्रथदेवलोक नारी संयोगकथन || दोयस्वामि काय भोग है दोयस्वामि फर सनिहारा चार सुगमें पनिहारे चारि सुरग में सव्दविचार ॥ चारस्वरगमेमन कौ विकलप प्रोगेस हज सील निर धार। प्रहमिंदरसवस दामुषी है वे है। सिइसषीय विकार||२३|| अथ एक सौ. रपुरसकथन।। छप्पे | चौवीसो जिनराजयायवे दो सुषदायक | कामदेव चोवीस ईस सुमिरोभुविनायका भरत आदिचत्रे सदेस वह सुर नर स्वामी | नारदपदममुरारिपौ रप्रतिहर जगनामी। जिनत्तात्तमात कुलकर पुरस संकर उत्तमजियधरौ। कुछ. वकुछभवधर जगतमुक तिरूपवंदन करै।। २३) पथकर्म प्रकति: १४८ | काव्याश ग्यानावरणीयेचदर्शनावर शीनो विधि/दोयवे दनी जानि मोहनीजा निमोहनी पाठ ४
SR No.010419
Book TitleMahavira Vardhaman
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1115
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size56 MB
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